हाय! रे स्कूटी
हाय! रे स्कूटी


दो पहिए की सवारी करना सीख ले हम भी,
सोच ऐसा ,पति देव को तैयार किया
तुम भी सुबह मॉर्निंग वॉक पर चलो और अपने बढ़ते पेट को कम करो ,
समय मिले तो मुझे भी थोड़ा स्कूटी सिखा दिया करो,
न चलाई हो जिसने कभी साइकिल,
सीखेगी कैसे वह स्कूटी चलाने के गुण?
यह सोच पतिदेव ने इनकार किया,
अपनी बातों के जाल में फंसा कर उनको,
स्कूटी सिखाने के लिए हम ने भी तैयार किया,
आज्ञाकारी शिष्या बन,
जुबां पर ताला लगा,
उनकी बात को अच्छे से समझा,
डांटे तो भी जुबान से लफ्ज़ एक भी ना हमारे फूटा,
लगा चार दिन बाद पति को,
सीख ही लेगी पत्नी भी हमारी दोपहिया वाहन चलाना,
सब ठीक चल रहा था
हफ्ता गुजर गया स्कूटी पर हाथ हमारा भी जमने लगा,
पत्नी हूं, आदत से मजबूर कंट्रोल अपना रखना चाहूं सब ओर,
कहां पति से हमने तुम बैलेंस देख लो,
एक्सीलेटर हम संभाल लेते हैं,
पुरुष वह बेचारे,
आ गए झांसे में हमारे,,
बात मान हमारी पीछे बैठ गए बनकर सवारी,
कुछ मिनट तक तो स्कूटी ऐसी हमने चलाइए जैसे कि बचपन से ही सीख के आई,
भारत की सड़क है भाई, यह भूल गए थे हम राही,
नई नवेले हम स्कूटी गड्ढे में जाकर गिराई,
धड़ाम से आवाज़ आई मुंह से चीख भी ना निकल पाएं,
स्कूटी की सीट से फिसल कर सड़क पर पड़े हम ,
पतिदेव भी पीछे से गिरे धड़ाम,
स्कूटी की हेडलाइट की तो भाई !सामत आई,
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बाएं हाथ पैर और चेहरे कंक्रीट की रोड छप आई,
ज़मीन में पड़ी देख स्कूटी घबराते हुए पूछ बैठे पतिदेव से तुमको तो कहीं चोट ना आई?
इतना पूछना था हमारा
उधर से गुस्से में लाल पतिदेव का जवाब है आया
"नहीं -नहीं तुम्हारे पिताजी ने मखमल का बिस्तर जो रास्ते में है बिछाया",
ज़मीन में पड़े हम तीनों अभी कुछ समझ भी ना पाए थे
लोगों ने आ हमे उठा रोड के साइड में बैठाया,
"थोड़ा संभल कर स्कूटी चलाए"हिदायत देख कर सब
लोग निकलते जाएं,
देख चहेरे पर पड़ी खरोच,
पतिदेव थोड़ा घबराए और हमें सीने से लगाएं
धीरे से बोले "अपनी जुबान की तरह तेज स्कूटी काहे चलाई?"
ब्रेक भी होते हैं ,ब्रेक क्यों नही लगा पाई?
पतिदेव की सारी बातें सुनते सुनते घर तक आई,
डैमेज स्कूटी को देख , खर्चे की चिंता में,
अपनी चोट के दर्द को भूल
आंखों से आंसू भी ना निकाल पाएं,
ऊपर से डॉक्टर ने दो -तीन इंजेक्शन और लगाएं
दो पहिया वाहन चलाने के ख्वाब को हम यमुना में बहा आए,
चोटिल हाथ पैर और चेहरे को लेकर आज कल पूरा दिन हम अपने कमरे में ही बताएं,
तीखे पति के कटाक्ष को भी आजकल हम हंस कर सह जाएं,
समय का चक्र बदलेगा ही,
घाव और चोट जल्दी भर जाएं,
फिर हम अपनी बंद जुबान का ताला खोल,
नारी सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण पतिदेव को दिखाएं ।