कर लो ज़िंदगी से दोस्ती
कर लो ज़िंदगी से दोस्ती
गहरी सोच है, तमन्ना है अनेक, दिल में जज़्बातों का समंदर शांत ही सही, खुली आंखों से देखते हैं सपने कई, पनपते हैं जो सुबह की उज्जवलता में यहीं-कहीं। दौर-ए -ज़माना देखा है हमने, अपनों का ही रंग उतरते देखा है हमने, बेगाने तो बेगाने हैं--- अपनों को ही यहां पैरों तले ज़मीन खींचते देखा हैं। हमने भी आसमान को अपना सहेरा बना लिया, नई ज़मी-जहां का शिलान्यास उसी दिन कर लिया, गहरी सोच और कई तमन्नाओं से अपने को रंग लिया। कहते हैं ख़्वाब देख तो लो, हक़ीक़त की धारा पर कहां जी पाते? यारों !हमने हक़ीक़त को ही बदल दिया। आंखों में अब नमकीन पानी कम है, ख़्वाब तैरते हैं पुतलियां में यहां दिन कई दफ़ा, रात के अंधेरों को अब हमने पूर्णमासी का चांद समझ लिया, जिंदगी है जब तक, चुनौतियों का सफ़र चलता रहेगा, आज कुछ तो ,कल नया कोई फ़लसफ़ा पनपता रहेगा, भागते रहेंगे तो फिर जिंदगी जीएंगे कब? मिलेगी नहीं दोबारा फिर ये बेवफ़ा, हमने तो जिंदगी के आगे दोस्ती का हाथ फैला दिया।। © दीपिका राज सोलंकी,आगरा (उत्तर प्रदेश)
