पिता
पिता
गृहस्थ जीवन में रखते कदम,
कई किरदारों से सज जाता जीवन,
नन्ही किलकारी की गूंज संग,
पिता भी होते आविर्भूत ,
अधछलके आंसू संग शुरू होता पिता के प्रसंग,
शिशु की छांव मां,तो आधार पिता,
पकड़ हाथ पिता जीवन पथदर्शक बनते,
अनुशासित परिधि में जीवन की पृष्ठ भू रचते,
छोड़ कई बार अपना अभिमान,
संतान के स्वाभिमान को जागृत रखते,
तिजोरी हो तंग चाहे कितनी भी,
हजारों की इच्छाओं को पता नहीं कहां से पूरा करते?
पिता में ऐसा गुण ईश्वर पता नहीं कैसे भरते?
लड़खड़ाते कदमों को कई बार संभालते,
बन सारथी जीवन राह प्रदर्शित करते,
सफलता -असफलता के मकड़ जाल फंसते दिमाग ,
पढ़ लेते पिता अपने अनुभव को बना आधार,
अपाहिज ना हो जीवन,
कड़े फैसला पिता के बनाते सबल,
अनुभवों की किताब होती हस्तांतरण,
पिता से दोस्त बनने के संग ,
माथे की लकीरें,
लड़खड़ाते हाथ,
उम्र की बढ़ती संख्या के बाद,
पिता ,पिता की ही भूमिका निभाते,
आंख मिचते समय तक,
पिता अपनी संतान का उत्थान ही चाहते,
इस धारा में ईश्वरी रूप धर पिता ,
जीवन धारा को निरंतरता का पाठ पढ़ाते,
पिता की सुरक्षा कवच में हर दहलीज,
फलती फूलती और उन्नत होता परिवार।
