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Devendraa Kumar mishra

Comedy Others

4  

Devendraa Kumar mishra

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आदमी का जहर

आदमी का जहर

2 mins
248


एक साँप 

एक मीटर नाप 

उसनें हमें डसा 

और स्वयं मौत के जाल में जा फंसा 

साँप तड़पने

लगा, हमसे कहने लगा 

हमने काटा, तुम्हें मरना चाहिए था 

ये उल्टा कैसे हो गया, जहर का असर हम पर कैसे हो गया 

हमने कहा, तुम्हारे जहर से आदमी सिर्फ नीला होता है 

आदमी के अंदर इतना और इतने प्रकार का जहर है कि

आदमी नीला, पीला, काला, सफेद सब एक साथ होता है 

आदमी के अंदर ढेरों जहर है 

और ये जहर का ही कहर है 

जिस प्राणी के पीछे आदमी पड़ा है 

उसका फिर अस्तित्व भी शेष नहीं रहा है 

आदमी के ज़हर से गंगा प्रदूषित हो गई 

अश्लीलता, अनाचार व्याप्त, नैतिकता न जाने कहां खो गई 

पेड़ कटे, पहाड़ कटे, पृथ्वी के टुकड़े हुए 

धर्म, जाति, भाषा, समाज, देश के नाम पर 

आदमी सैकड़ों हिस्से में बंटे 

घर जले, मन जले, नारी जले, शहर जले 

और एक दिन ये तन जले 

अणु परमाणु के विस्फोट से स्वयं मानव अस्तित्व भी खतरे में पड़ा 

आदमी बनाने वाला ईश्वर भी रो पड़ा 

आदमी के अंदर मक्कारी का जहर है 

बेईमानी का जहर है 

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार का जहर है 

ये धरती आदमियों का शहर है 

हर ओर आदमी के ज़हर का कहर है 

हे नाग, तुम्हारे जहर का तो फिर भी उपाय है 

आदमी के ज़हर से तो दुनिया में मची हाय हाय है 

नहीं है आदमी के ज़हर का कोई इलाज 

तेरा क्या होगा महादेव के लाडले आज 

इतने में आदमी का जहर असर कर गया 

और बेचारा साँप मर गया



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