तारीफ के बोल
तारीफ के बोल
एक बार बीवी के मायके से
कुछ रिशतेदार आये
संग दिवाली की शॉपिंग भी
कर गये।
हम भला कहाँ कुछ कहते
गर कहते तो ताने है सुनने पड़ते
क्योंकि अपनी कहाँ कमाई थी
बीवी ही घर खर्चा चलाती थी।
साले साहब बोले,
जीजू जरा राज खोलो होले होले
कैसे मेरी, बहन को पटाया ?
नल्ला पति जो उसको भाया ?
भला क्या हम जुबाँ से कहते ?
अपनी गुलामी का राज खोलते ?
कमबखत्त, तारीफ के पुल में,
गाली दे गया।
हमको अप्रेलफुल समझ गया
फिर भी हमें हँसना पड़ा,
क्योंक् वो बीवी का भाई जो ठहरा
आखिर गलत भी क्या कहाँ था भाई ?
नल्ला हूँ, बात तो सच उसने कही।
साली के मिजाज जरा हटके थे,
आँखो से इशारे कसते थे
सोचा, वाह क्या बात है।
दिवाली का बोनस लग रहा है
बीवी को घर में ना पाकर
पास वो आई,
दिल लगता धड़कने,
इतने में ,कानों में वो फुसफुसाई।
होती है ज
ीजू मुझे दीदी से जलन,
कितने साफ मांजते हो बरतन,
और घर को क्या सजाया है।
वाह पति कम कामवाली बाई,
दीदी ने खूब नसीब पाया है।
साथ में थी बीवी की सहेली
वो भी फिर हँसके बोली,
जरा हमसे भी कर लो नैन मटक्का
सुना है सहेली के पति पर,
आधा हक हमारा भी है बनता।
माना थोड़े भेंगे है,
रंग काला हुआ तो क्या ?
दिल तो साफ रखते हैं।
वो ना हो घर तो,
हाथ हम बटायेंगे,
तुम मांजना बरतन,
हम पानी से धोयेंगे।
बाते करलेंगे
दिल बहलाने वाली,
सुनो जीजू, आखिर मैं भी तो हूँ
आपकी साली।
बीवी की गैर मौजुदगी में
काम आने वाली।
सुन के तारीफ के बोल
मन हमारा जाता डोल।
उससे पहले, खुद को संभाला
हाथ जोड़ कह डाला।
देवियों, माफ करना
एक बार गलती कर गये।
शेर से गधे बन गये
अब ना गलती दोहरायेंगे।
वरना सुनना पड़े,
वो मंजवाती है बरतन,
आप पैर दबवाओगे।