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आनंद कुमार

Comedy

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आनंद कुमार

Comedy

रिश्तेदार की शादी

रिश्तेदार की शादी

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एक बार रिश्तेदार की शादी का निमंत्रण आया,

ऐसा लगा जैसे ज़लालत का आमंत्रण आया।

हम रिश्तेदारों की उपस्थिति नाप चुके थे,

जलील होने की सभी पस्थितियां भांप चुके थे।


घरवालें मुझे रिश्तेदार की शादी में ले जा रहे थे,

वो गांव वाली दादी याद कर रही है, बता रहें थे।

मैंने अपनी मनोस्थिति से अवगत कराया,

मैं नहीं जाऊंगा, ये उनको प्यार से समझाया।


फिर क्या था, पापा ने डंडा उठाया,

और ना जाने का मेरा भूत तुरंत छुटाया।

ऐसी पड़ी मार, कि कोई बचाने फिर ना आया।

रोते-रोते वक्त गुज़रा और मैंने खुद को शादी में पाया। 


वहां हालात अलग ही चल रहें थे,

बराती नागिन डांस पर थिरक रहें थे।

कई सांप का फन लेकर डंस रहें थे और,

कई सपेरे हाथों की बीन बनाते दिख रहे थे।


दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे के इंतजार में मरे जा रहे थे,

बचें-खुचे रिश्तेदार खाने के चक्कर में लड़े जा रहें थे।

फूफा और जीजा गुस्से वाले किरदार में नजर आ रहे थे,

बैंड वाले मैं तेरी दुश्मन, दुश्मन तूं मेरा बजा रहे थे।


सालियों द्वारा जूते चुराने के भरपूर प्रयास किए जा रहे थे,

बरातियों द्वारा जूते बचाने के जोखिम उठाये जा रहे थे।

कई बराती अपने जूते चोरी होने पर भी प्रसन्न दिख रहे थे,

दुल्हन पक्ष सही जूते ना मिलने से थोड़ा खिन्न लग रहे थे।


मेरे चचेरे भाई ने मुझे रिश्तेदारों से भरा कमरा दिखाया,

मुझे तुरंत जोंक से भरा तालाब याद आया।

उसमें गिरता तो शायद बच जाता, 

परंतु यहां से बचना बहुत मुश्किल था।


कुछ शिकार बेइज्जती के फंदे में धीरे-धीरे फंस रहें थे,

रिश्तेदार उनकी बेइज्जती करके खूब खुश दिख रहे थे।

हमने सोचा अब हम यहां इन्कलाब लायेंगे,

>बेइज्जती के इस चक्र को तोड़ के दिखायेंगे।


एक दादाजी हमारी काबिलीयत जांचने आये, बोले,

"तीतर के आगे दो तीतर, तीतर के पीछे दो तीतर,

तीतर के ऊपर दो तीतर, तीतर के नीचे दो तीतर,

तो बताओ कितने तीतर?"


इस प्रश्न में मुझे कुछ लोचा नजर आया और

अपना नया जबाव उनको चिपकाया, मैंने कहा


" ये तीतर उड़ क्यों रहा है?

  और वो भी इतने घने जाम में,

  अगर थोड़ा सा तीतर इधर-उधर हो जायेगा,

  तो सब कुछ तितर-बितर हो जायेगा।

  

   इसको बोलो खंडाला चला जाये और 

  वहां जा कर अपनी बची हुई जिंदगी बसाये।

  वहां भीड़ थोड़ी कम है, शांति से उड़ पायेगा,

 यहां तो भीड़-भाड़ में ही कहीं निपट जायेगा।

   

 हम तो कहते हैं वहीं अपना घोंसला बना ले,

 बची हुई जिंदगी वहीं शांति से बीता ले।

 वहां उसको जानने की जरूरत ही नहीं है कि,

 तीतर के आस पास कितने तीतर उड़ने है?"

  

ये जबाव दादाजी को पसंद नहीं आया,

दादा जी अड़ गए, इसी बात पर हमसे लड़ गये।

"तुमसे एक सवाल पूछा था, कहानी बना दी

तीतर की पूरी जिंदगी खंडाला में ही बसा दी।

तीतर के सवाल पर हमें पूरी वकालत पढ़ दी।


अरे तीतर है वो, देश-दुनिया घूम कर आयेगा,

अपनी पूरी जिंदगी खंडाला में ही क्यों बितायेगा?

इतनी उड़ान में मसूरी, देहरादून पहुंच जायेगा,

मस्त आराम से वहीं पहाड़ों में खायेगा।"


उन्हें हमारा यह जबाव भी पसंद नहीं आया,

बेइज्जती के दरिया में उन्होंने हमें खूब डुबोया।

ना हम आते यहां, तो ना ये तीतर होता, 

और ना ये सब-कुछ तितर-बितर होता।


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