Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

arun gode

Comedy

4  

arun gode

Comedy

कार

कार

3 mins
615


साली जी ने पता नहीं क्या दी मोबाइल पर खबर,

तभी से पता नहीं क्यों घरवाली की हो गयी शुरु चबर-चबर

अब तो होने लगी थी हर बात पर मुझसे उनकी तू-तू, मै-मै,  

सुबह हो, शाम हो या चाहे क्यों ना हो फिर दोपहर

अब पता चला साली ने खरीदी थी एक नई कार,

इसलिये शायद मेरे घर में शुरु हो गया था कार का वार

दिन बीतते लेने लगी श्रीमति अब तो मेरी हर बात पे खबर,

जो दिखाई देने लगी थी उन्हें साली जी की कार ही चारों ओर


प्यार से समझाने की बहुत कोशिश की रह-रहकर,

मगर सब बेकार, बस बैठी थी वह एक ही रट लगाकर

कहने लगी, ले आओ जी पहले हमारे लिये एक कार,

तभी मान पाऊंगी मैं, मेरे हमनशीं, मेरे सरकार

ये कैसा मुझपर है वक्त आया, एक कार के लिये,

पत्नी ने ही बनाया पराया बस एक कार के लिये

कार नहीं तो प्यार नहीं, कैसे बुलंद हुआ ये नारा,

इस उम्र में ये सहा नहीं जाता, सोचा क्यों ना मैं ही हारा 


एक दिन गुस्से से पहुंचा, पत्नी को लिये साली के द्वार,

पत्नी के होते हुये भी की उससे खुब आंखें दो-चार

पता नहीं इस बार, श्रीमति की नहीं थी कोई तकरार,  

समझ में आ गया यह था न सुलझने वाला पत्नी का कार का वार               

अब तो साली जी भी करने लगी प्रबोधन यह कहकर,

जीजा, क्या इतना भी नहीं कर सकते दीदी के साथ रहकर

चिंता ना करो बैंक से मैं ही लाऊंगी सारे कागजात उठाकर

आप तो कर देना कुछ नकदी के साथ बस दस्तखत उनपर


अब तो पानी सिर चढ़ रुका था, नाक तक पहुंच कर,

अब तो होना ही था जिन्दगी पर कुछ-ना-कुछ गहरा असर

जैसे ही हमने ना कहलाई, पत्नी भी कैसे छोड़ती कसर,

मामला जा पहुंचा ससुराल, पत्नी भी छोड़ गई अपना ही घर

माह बिताया कैसे तो भी, हर लम्हा गिनाकर ,

बच्चों ने भी परेशान किया था, खुब मुझे रह-रह कर 

खाना बनाओ, ओफिस जाओ, चुर हो जाता था थककर,  

होटल से मंगाने लगे खाना, न खाया जाता जी भरकर

   

अभी तक भी ना आयी थी ससुराल से कोई खबर 

मुझे भी समझ आ गया श्रीमति का मेरे जिन्दगी पर का असर,

याद आने लगी संत, साधु, महात्माओं की वाणी,

मेरा हाल यह हुआ था बन बैठा था अर्ध-नारीश्वर

अंदर की आवाज ने मुझे लगाई फिर जोर से ललकार,

कुछ भी हो नहीं माननी तुझे, किसी भी हाल में हार

 न आती तो न आये, रुठा है तो रुठा रहे उनका प्यार,  

 

अब तो ठान ली की नहीं लेना है मुझे किसी हाल में कार  

बीते पंद्रह ही दिन थे, यह संकल्प लेकर,

ऑफिस जाने निकला, डाकिया खड़ा था द्वार पर

खुशी मनाओ, भाभीजी का ही लगता है ये तार,

खुशी मनाने का था कारण उनके आने की खबर जानकर 

आखिर पत्नी ने इकतरफा ही खत्म किया था ये वार, 

बोनस में सास-ससुर, साला-साली भी करने पहुंचे पाहुन चार

चार दिनों तक दावतें हुयी, सभी ने चखी खुश हो – हो कर,

हैरान हुआ मैं देख, जो असर पड़ा था मेरी जेब पर

समझ में आया दोनों तरफ से मुझ पर ही पड़नी थी मार,  

लानी ही पड़ी आखिर मुझे हारकर लोन पर एक नवेली कार

साथियों सबक ध्यान में हरदम रखना मुझे याद कर,

खत्म कर देना ये वार शुरु में ही खुद को मेरी जगह जानकर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Comedy