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"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Comedy Drama Inspirational

4.5  

"निर्मूणी"@ संजीव कुमार मुर्मू

Comedy Drama Inspirational

"उठने में गिरने का आनंद"

"उठने में गिरने का आनंद"

3 mins
411


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


विचारो की ऐसी तेज़ उल्टा पलटी

सुबह जो प्रोग्रेसिव नजर आता

शाम तक करता रियेक्शनरी व्यवहार

रियेक्शनरी माना जाता

प्रोग्रेसिव पोजीशन बन जाता


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


पतन में भी कमपीटीसन

एक कहता फारवर्ड

दूसरा कमान देता बैकवर्ड

कल तक जो चीज थी पतित

आज वही उन्नत


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


कल जो पिछड़ेपन की निशानी

आज अगड़ेपन की कहानी 

वर्ग युद्ध की जगह धर्मयुद्ध

कम्युनल धर्म सुधार चाहता

सेक्युलर धार्मिक तत्त्ववाद की ओर


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


ऐसी मजेदार उलट पलट

हिजाब बुरखे या बिंदी

सिंदूर या घूंघट 

अधिकांश वामपंथी


स्त्रीतव्वदी सेक्युलरवादी

माने स्त्री की गुलामी प्रतीक

आज उन्हीं को स्त्री की

"अस्मिता की आजादी" बताते


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


इसे कहते २१सदी में १५सदी की डुबकी

उत्तर आधुनिकतावादी में

मध्यकालीनजंक 


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


बहुत होलिया नवजागरण

बहुत हो चुके मॉर्डन

बहुत कर लिए हारवर्ड फारवर्ड

बहुत बन लिए सेक्युलर ड्रेकूलर

बहुत भोग लिया विकाश

बहुत हो चुके समाज सुधार

बहुत कर ली क्रांति

बहुत बन गए क्रांतिकारी

इन सब को लात मार


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


आ अब पलट

मध्यकालीन कंदरा में चले

२१वी सदी में १५वी सदी का सीट रिजर्व करा


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


मौलिक आधुनिक सीन

हिजाब बुरखा पहन

लम्बा सा घूंघट काढ़कर

पढ़ने स्कूल कॉलेज की कक्षाओं में


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


हिजाब बुरखा परदा घूंघट

सब स्त्री की निजी चॉइस आजादी

कैसे दिव्य दिन दिखा करेंगे

स्त्रीतावादी हिजाब बुरखा पहने

मांग में सिंदूर भरे घूंघट काढ़े

टीवी पे चर्चा किया करेंगी


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


लेफ्ट उदारतावादी सेकुलरवादी

कांमरेड कोपिन पहन

सिर पे टोपी धारण कर

कंधे पे जनाऊँ लटकाए

माथे पे तिलक लगा

हाथ में गीता रामचरितमानस का गुटखा

एक दूसरे से" हाय हैलो "करते

"धर्मम शरणम गच्छामि" जपते


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


कैसा अद्भुत सीन बना करेंगे

हाथ में मोबाइल 

गूगल ट्यूटर फेसबुक वाट्सएप इंस्टाग्राम होंगे

दूसरे में शरिया अपने अपने कर्मकांड की पोथियाँ

पाव २१वी सदी में होंगे

दिमाग १५वी सदी में 


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


साहित्यिक समारोह कितने दिव्य

बुरखा हिजाब पहने

घूंघट काढ़े स्त्रीत्ववादी कवयित्री

स्त्रीत्ववादी कविताओं की पाठ करेंगे


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


टोपीधारी तिलकधारी समीक्षक 

"वाह वाह "और" साधु साधु "

करेंगे

ऐसा चमत्कारी समय

एक ही वक्त में

धार्मिक कट्टरवाद के वकील

वामपंथी क्रांतिकारी व उदारवादी भी


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


आ अब लौट चले

२१वी सदी की सुपर विलेज में

१५वी सदी की कट्टरवादी पहचान की ताने तंंबू

बतायेंगे" निजी चॉइस निजी आजादी"


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


विकाश में ले" ह्रास का मजा"

उत्थान में "पतन का मजा"

"उठने में गिरने का आनंद"

आ अब लौट चले


"न यह शिवशंभु का चिट्ठा

न परसाई जी का व्यंग

पढूं और आनंद लूं

ना मैं चट्ठू खाने में

हंसी है की रुकती ही नहीं"!!


निर्मुणी@संजीव कुमार मुर्मू


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