shaily Tripathi

Comedy

4.9  

shaily Tripathi

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जादुई करिश्मा (day 10)

जादुई करिश्मा (day 10)

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कल मेरे साथ एक हादसा हो गया 

ट्रेन से टक्कर खाकर सिर मेरा खुल गया 

छोटा 'दिमाग़' मेरा वहीं, कहीं गिर गया 

जादू हुआ जैसे खुला सिर जुड़ गया 

होश में आ गयी, खरोंच तक नहीं थी , 

बाल सलामत थे, खून भी बहा नहीं! 

मस्तिष्क खोने का थोड़ा सा दुःख था 

आगामी जीवन पर प्रश्नचिन्ह लगा था, 

दिमाग़ गिर जाने से सिर एकदम हल्का था

पैर रखती कहीं तो कहीं और पड़ता था 

सोचने-समझने की शक्ति ख़त्म हो गयी 

किसी चमत्कार से, वापस घर आ गयी 

मेरा भरम था या कोई चमत्कार था?

मेरे में फर्क़ कोई, पति को नहीं दिखा  

फलतः यह हादसा अंजाना रह गया 

बे-दिमाग़ मेरा सिर, अटपटा नहीं लगा… 


सब काम करती थी, बरसों की आदत थी 

खान-पान, शैय्या-सुख ठीक-ठाक देती थी 

दिमाग़ ही नहीं मेरा स्वाभिमान खो गया 

मियाँ और बीवी का युद्घ ख़त्म हो गया 

सोच नहीं पाती थी, ज़िन्दा कठपुतली थी 

लेकिन परिवार हेतु मैं एकदम ठीक थी 

जबतक थी बुद्धि मुझे दुःख बहुतेरे थे 

अहम टकराते थे, झगड़े नित होते थे 

बात-बे-बात जब अपमान होता था 

दिमाग़ झनझनाता था दिल मेरा रोता था 

अवसाद होता था, मायूस रहती थी 

स्वयं को पीड़ित सा महसूस करती थी 

ज़िन्दगी बोझ सी कन्धों पर लटकी थी 

बुद्धि थी तो सोचती थी और दुःखी होती थी 

अब ना दिमाग़ है, ना स्वाभिमान है 

सुख है न दुःख है अब हर दिन सपाट है,


ऐसा ही जादू यदि दुनिया में छा जाये 

घर-घर का झगड़ा-टंटा शायद कम हो जाये 



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