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मिली साहा

Comedy

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मिली साहा

Comedy

ख़ज़ाना

ख़ज़ाना

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शर्मा जी की घरवाली को एक दिन मिला बड़ा खज़ाना,

बोले शर्मा जी क्या है यह माजरा ज़रा हमें तो समझाना,

शर्माइन बोली अरे धीरे तो बोलो सुन लेगा सारा ज़माना,

जुबान बंद,कान खुले रखो मैं बताती हूँ सारा ताना बाना,


घरवाली की सुनकर फटकार शर्मा जी हो गए समझदार,

कान आगे करके बोले अब तो बताओ पूरी बात सरकार,

शर्माइन बोली पेट में बात न पचती तुम्हारे हो बड़े बेकार,

पर इस बार किया ऐसा तो हो जाएगी जबरदस्त लट्ठमार,


शर्माइन क्यों ऐसे डराती हो कल ही तो तुमने की कुटाई,

घबराहट अभी भी बाकी है तुमने जो बेलन से की पिटाई,

जो बात बतानी थी घरवाली जी वो बात तुमने नहीं बताई,

बात ख़ज़ाने की हो रही है तुम क्यों बेलन, करछी ले आई,


शर्माइन को थोड़ी आई दया शर्माजी को सारी बात बताई,

बोली घर के पीछे बागीचे में सिक्कों से भरी कलशी पाई,

बोले शर्माजी कलशी दिखाओ देखें किस्मत क्या रंग लाई,

पर शर्माजी चौंक गए क्यों शर्माइन इतनी जोर से चिल्लाई,


शर्माजी जब पहुंचे वहां शर्माइन तो हो रही थी आगबबूला,

हाथ कमर पे रखकर बोली बर्तन क्यों नहीं अब तक धुला,

शर्माजी का छूटा पसीना मन में सोचा कैसा यह जलजला,

हाय खजाने के चक्कर में तो शर्माइन ने मुझे ही धो डाला,


शर्माइन भूली कलशी दिखाना और भूल गई वो खज़ाना,

बेलन दिखा बोली शर्मा जी को सारे बर्तन आज ही धोना,

मन में बड़बड़ाए शर्मा जी ये मिला मुझको कैसा खज़ाना,

एक तो फटकार खाई ऊपर से पड़ रहा यह बर्तन धिसना,


कहां है कलशी कहां खज़ाना शर्माइन भी थक के सो गई,

उधर बेचारे शर्माजी की बर्तन धोकर हालत पतली हो गई,

सुबह हुई जब शर्माइन को अचानक ख़ज़ाने की याद आई,

झटपट दौड़ी -दौड़ी गई और जल्दी से कलशी लेकर आई,


शर्माइन ने आवाज़ लगाई शर्माजी घोड़े बेचकर सो रहे हैं,

शर्मा जी बिस्तर पर पड़े-पड़े एक आंख खोल देख रहे हैं,

कल की फटकार से बेचारे शर्माजी तो अब भी डरे हुए हैं,

आंखें खोलते ही सामने बस बेलन और करछी घूम रहे हैं,


फिर भी डरते डरते आए बेचारे शर्माजी शर्माइन के पास,

बोले देखो शर्माइन कृपाकर सिर्फ ख़ज़ाने की करना बात,

आज के बर्तन भी धो लूंगा सारे शब्दों से न करना आघात,

शर्माइन बोली चलो दिखाऊं खज़ाना छोड़ो कल की बात,


जैसे ही शर्माइन ने कलशी खोला वो तो मिट्टी से था भरा,

देख कर ये सब शर्माइन का अब तो माथा ही ठनक गया,

उड़ेल दिया कलशी को शर्माइन ने पर कुछ भी ना मिला,

बड़बड़ाकर मिट्टी फैलाई जब तो एक पर्ची हाथ में आया,


लिखा था जिस पे जा रहा समोसे खाने इंतजार ना करना,

फैलाई है मिट्टी फर्श पर तुम उसको ज़रूर साफ कर लेना,

शर्माजी गायब कमरे से शर्माइन को गुस्से से आया पसीना,

शर्माइन की शामत आई भारी पड़ा उसके लिए ये खज़ाना,


कुछ देर बाद शर्माजी लौट आए हाथ में कुछ समोसे लेकर,

बोले शर्माइन थक गई हो लो समोसे खाओ चटनी लगाकर,

शर्माइन हमारी प्यार भरी नोंक-झोंक है खज़ाने से बढ़कर,

धन दौलत में क्या रखा है खुशी तो मिलेती है साथ रहकर।



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