शादी न करना-हास्य कविता
शादी न करना-हास्य कविता
ये केवल एक हास्य कविता है कृपया बुरा न मानना,
शादी जीवन भर का झमेला, ये शादी तुम ना करना,
पत्नी से पीड़ित एक मासूम पति की, है यह कहानी,
मैं बेचारा हूँ शांत सरोवर और मेरी धर्मपत्नी सूनामी,
कुछ बोलूँ तो दिक्कत गर न बोलूंँ उसमें भी दिक्कत,
ज़ुबान भी मेरी घबरा जाती आखिर कैसी ये आफ़त,
एक दिन तो हद हो गई, खुद से मैं कर रहा था बातें,
कर दिया बुरा हाल मेरा, शब्दों से मारकर लात घुसे,
इतने से भी न मानी, बोली जो बुदबुदा रहे थे बोलो,
अब मैं बेचारा क्या करता करता गया उसको फॉलो,
आसमान से गिरे खजूर में अटके मुहावरा कमाल है,
मुझ जैसे पतियों के लिए, जिसका हुआ बुरा हाल है,
करनी है गुलामी जिसको वो बांँध लो सर पर सेहरा,
पर निभानी है तुमको शादी तो हो जाना गूंगा बहरा,
पत्नी का कहा सब सत्य वचन, पति बोले तो झूठा,
बेलन दिखाकर डराती ऐसे अब पीटा कि तब पीटा,
गढ़ फतह करना है पत्नी जी की तारीफ़ करना भी,
अंगारे सिर पर जो रखना चाहे, कर लेना शादी जी,
सत्ता घर में पत्नी की चलेगी गांठ बांँध लेना ये बात,
अक्ल के घोड़े मत दौड़ाओ, कुछ नहीं तुम्हारे हाथ,
भूलकर भी उसके मायके वालों की करना न बुराई,
एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट तानों से होती है कुटाई,
इतने रंग तो जीवन के नहीं, जितना पत्नी दिखाती,
मुझको वाद्य यंत्र समझकर, तबले की तरह बजाती,
हंँसता हूंँ तो शक करती, चुपचाप रहूँ तो भी करती,
जाती है जब मायके वो, पांँचों उंगलियांँ घी में होती,
खुशी से नाचते हुए गया था लेकर बैंडबाजा बारात,
किसे पता, मुस्कुराहट से थी वो, आखरी मुलाकात,
रोंगटे खड़े हो जाते हैं,सुनकर पत्नी जी का प्रवचन,
संसार के सारे ज्ञानी भी फेल, करते हैं इनको नमन,
दाल नहीं गलेगी इनके सामने, बेकार सभी प्रयास,
अरे ये तो एक हास्य कविता है क्यों होते हो उदास,
जाओ कर लो ये शादी, बन जाओ पत्नी के डमरु,
हर पल बजाएगी फिर, सुनना वो लफ़्ज़ों के घुंघरू,
ये बस हंँसी मज़ाक, पति पत्नी का रिश्ता निराला,
विवाह है पवित्र बंधन एक रिश्ता नोकझोंक वाला,
जीवन रूपी गाड़ी के पहिए दोनों,चलते एक साथ,
एक दूजे के बिना अधूरे ये, अधूरी जीवन की बात।