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Mani Loke

Abstract Comedy Classics

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Mani Loke

Abstract Comedy Classics

सुहाना सफर

सुहाना सफर

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 वादियों को चीर कर चली जा रही थी, 

ट्रेन हमारी बड़ी जा रही थी।


पहला सफर यह अकेला सफर था,

ट्रेन में अकेला यह पहला सफर था।


साथ में नेता भी शायर भी थे,

कुछ हम जैसे सादे मुसाफिर भी थे।

पहला सफर यह सुहाना सफर था,

सुहानी वादियों से घिरा यह सफर था।


कुछ खट्टी यादें,कुछ मीठे तज़ुर्बे,

राह काटने के लिए आसार ही थे,कहा था

जो हमने शायर उन्हें,शर्मा के बोले मुलाजिम है हम।

पूछा जो उनसे नेता है आप,

इठला के बोले जी हां जनाब।


बातों का सिलसिला कुछ यों चल पड़ा,

राह हमारा यूं ही गुजर गया।

थे और भी मुसाफिर हमारे कंपार्टमेंट में,

छह आठ बिस्तरों की इस मुसाफिर खाने में।

 बातों का सिलसिला कुछ यों चल पड़ा,

ादियां हटी नया शहर रुख किया।

मिले जो वो नेता तो बातें हुई,सियासत के फिर कुछ बातें हुईं।


देश-विदेश की कुछ बातें हुई,।

कुछ और कट गया सफर फिर से वादियां दिखीं, गुम हो गए

फिर से हम वादियों में एक बार,कुदरत की अनुपम देन में इस बार।

 स्टेशन पर रुकी जो गाड़ी एक पल,खाया हमने समोसे मटर।

 हुआ शायरी का दौर जो शुरू,किया वाह वाह हमने हुजूर।

शायर की शायरी सुनकर जनाब,बने हम भी शायर मगर बेनाम।


चला फिर जो चुटकुले शायरी का दौर,मुहावरों से लेकर कहानियों का दौर।

वादियों से गुजरा था मेरा सफर, शाम ढली फिर वह पल आया, 

मुकाम पर हमें जिसने था पहुंचाया, याद रहेगा यह सुहाना सफर,

अकेला सफर था यह पहला सफर, शायर और नेता के साथ का सफर, 

अकेला सफर यह पहला सफर।


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