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Mani Loke

Classics Inspirational Thriller

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Mani Loke

Classics Inspirational Thriller

मौसम और उम्र

मौसम और उम्र

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दिल बेचैन है तप्ती रूह है, मौसम बदल रहा देखो, शोर ही शोर है।

खिलते गुलाब है,अब सेवंती उदास है,

बहार चली गई अब तो ग्रीष्म काल का राज है।

मौसम बदलना दस्तूर है,शायद दिल को भी ये कबूल है।

पर उम्र के बदलाव पर वही दिल रोता ज़रूर है।

बचपन से, बुढ़ापे का सफर, तो बड़ा ही मस्त है।


राह में दोस्त, कॉलीग, और हमसफर का साथ ज़रूर है।

हर किसी को चलना होता इसी एक राह पे ज़रूर है।

फिर भी देखो अपने उम्र का गुमान आज सब मे ज़रूर है।

पलटा मैं जो अपने राह में, मुड़ कर देखने अपना मुकाम।


लगा मंज़िल तो अभी पास है पर राहगीर दूर है।

साथी केवल वक्त है ,जो बीते, नही बीत रहा है।

उम्र के इस पड़ाव में,हर कोई देखों यों ही जूझ रहा है।

अपनी किताब के पुराने पन्नों को खोल रहा हूँ मैं।


अपने साथी, वक्त के संग, गुज़रे वक्त को सोच रहा हूँ मैं।

हर जिम्मेदारी थी इबादत, हर शौक को दबा दिया,

आंखें होती मेरी थी, पर सपना अपनों का दिखा दिया,

जिनके खातिर अपने वक्त को देखो मैने खोया है।


आज उन्हीं को मुझे वक़्त की कीमत समझाते देखा है।

हर शख्स की है यही कहानी, इसमे ना उलझना सीखा है।

हर वक्त की होती अपनी कीमत,हर उम्र की राह अजूबा है।

दोष नही कोई अपनों का, शायद फर्क उम्र और तजुर्बे का है।


खाली वक्त में देखो मैंने, अपने वक्त को देखा है।

मौसम को बदलते देखा है, उम्र को ढलते देखा है।

इस उम्र में मैने, कइयों को बच्चों सा बिलखते देखा है।

बात मनवाते देखा है, बेबसी के, आलम को भी देखा है।


सच ही है देखो खुद को फिर से बच्चा बनते देखा है।

सत्ता जो थी मेरी, अब औरों का राजपाट होते देखा है।

हर बात पे जो लेते थे मेरी सहमति, आज मुझे ही नकारते देखा है।

हर मौसम के बदलाव पर, जब रहन सहन का बदलाव है।


तो क्यों, उम्र के बदलाव को ,नहीं ये दिल कबूल पाता है।

साथ नही पर संग होने का, विश्वास नही जगाता है।

थोड़ा सा गर मेरा मन भी, समझौतों से रहता है।

तो देखो कितना हसीन और खुशगवार मेरा वक्त भी होता है।


थोड़ी उनकी सुनकर, उनमे जब खुशियां ढूंढता है।

तो देखो हर मौसम को बहार बना दिल उम्र का साथ देता है।

तब दिल खुश होता ज़रूर है,बदलाव को अपनाता वो खूब है

मौसम का बदलना दस्तूर है, शायद दिल को भी ये कबूल है।।


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