उसकी दीवाली और मेरा दिवाला।
उसकी दीवाली और मेरा दिवाला।
वो उसकी हसीना थी,
जब मुस्कुराती,
बलखा के चलती,
जुल्फें हवा में बहकती।
गालों पर डिंपल,
जो भी एकबार देखें,
न रह सके,
उनमें बिना गिरे।
दीवाली आई,
उसने बड़े प्यार से,
बुलावा भेजा।
अकेले आने को फ़रमाया,
वो बहुत खुश,
चांद सितारों पर मन,
लेकिन बात अटकी,
कौन सी पैंट और शर्ट जंचेगी।
आखिर दिमाग में कशमकश,
कैसे चलाएं काम,
लड़की के निमंत्रण पर,
हमारा सिक्का जाए जम।
दिमाग खूब हिलाया,
परंतु कमबख़्त ने,
ऐन मौके पर फेल करवाया।
आखिर सोचा,
ओपीनियन पोल लें,
सबको फेसबुक पर किया मैसेज,
ऐसे वाईहाथ थे कोनसैप्ट।
आखिर एक जगह,
दिमाग फंसा,
वो था मलमल का कुर्ता,
और नीचे सपलीट जीन।
उसको भाया,
तुरंत आनलाइन मंगवाया।
बिल देखा,
तो होश बेहोशी की तरफ,
लेकिन दिमाग में,
उसकी छवि,
उसने भी दे दी कुर्बानी।
उसको पहनकर,
पहुंचा महफ़िल में,
उसकी ओर बढ़ा,
उसने झट से गर्दन,
दूसरी तरफ घुमाई,
उसकी इज्जत पर बन आई।
उसने पुकारा,
मेरी दिलरुबा,
जरा हमसे भी आंख मिला।
वो गुर्राई,
गुस्से में चिल्लाई,
क्या तुम भिखारी हो,
या फैंसी ड्रेस में आए हो।
एक ढंग का कपड़ा नहीं रखा,
कम से कम,
अपना नहीं,
मेरी इज्जत का ही,
ख्याल होता रखा।
उसे अपने पर,
बहुत लानत हुई,
कैसे झेल पाता,
ये दोहरी मार,
एक लड़की हाथ आई थी,
गवाई,
दुसरा जेब भी ढीली करवाई।