कितने झूठ।
कितने झूठ।
जब भी,
कोई हसीना देखता,
उसका ख्याल आ जाता।
दिमाग में सपने,
गढ़ने लगता,
मन ही मन,
उससे बातें करने लगता,
लेकिन अंत में,
जब चेतना जागती,
उसे न पाकर,
मन का झूठा,
एहसास देना,
बेहद तकलीफ़ देता,
सब छिन्न-भिन्न हो जाता,
मन मसोस कर,
बैठ जाता।
फिर नया,
सपना गढ़ता,
किसी ओर के,
बारे में सोचता,
यही प्रक्रिया दोहराता,
अंत में,
यहां भी चूक जाता।
ये चूकने का खेल,
आज दिन तक,
चलता रहा,
लेकिन बदकिस्मती देखिए,
हमें उसका दीदार,
न हुआ।
बस समय का पहिया,
घूमता रहा,
और हम उसकी के साथ।।