हरा सकूं देता
हरा सकूं देता
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जब भी प्रकृति को देखता,
उसे आगे बढ़ता पाता,
भिन्न भिन्न रंगों में,
कभी हरा,
कभी काला,
कभी खिलता हुआ,
फूलों में,
ये एक अजीब सा,
एहसास देती।
यहां से इंसान,
नवीनीकरण और सोंदर्यकरण का,
सबक सीखता।
उसे प्रयोग करने के,
नये से नये,
विचार देती,
नई से नई,
उमंग पैदा करती,
उसका उत्साह बढ़ाती,
एक प्रेरणा देती,
और फिर वो,
इस लकीर का,
अनुसरण करते हुए,
दुनिया में,
ऊंचा से ऊंचा,
मुकाम तय करता।
एक दिन,
बहुत बड़ी ख्याति,
पा जाता,
और समाज के लिए,
महत्वपूर्ण पदचिन्ह,
छोड़ जाता।