किंतु-परंतु
किंतु-परंतु
आज थोड़ा लंगडाते,
हमारा परममित्र,
नाम उसका रामभाया
हमारे घर आया ।
मैंने,
मज़ाक में पूछा,
"क्या हुवा भाया !"
क्या ?
घर में हुवा,
वाद विवाद ।
फलस्वरुप मिला है,
कुछ प्रसाद..
या प्रसन्न हुई,
भाभीजी की छाया।
अचानक सारा,
प्यार उमड़ आया ।"
फिर वह,
सहज होकर ,
करने लगा बात ।
"सुबह बैठकर,
चाय पी रहे थे साथ।
चल रही थी कुछ,
नयी पुरानी बात
पुरानी बात पर,
चालू थी,तू मैं तू,
किंतू परंतु...
किंतू परंतु में ,
उलझी कुछ बात।
नहीं समझ रही थी यथार्थ।
यथार्थ को समझाने,
दिया एक तथ्य।
तेरी सहेली बिमला से,
चल रही थी मेरी बात।
किंतु उसने नही दिया साथ।
परंतु तुमसे चली बात तो ..
हो गये एक साथ ।
सुन वह,
खुशी से हुई खड़ी तो !!
चाय की केटली,
पैर पर पडी ।"
इतना सुन..
मैं बोला,
"मैं सब समझा,
प्यारे रामभाया,
धन्य है तू...
धन्य तेरी महामाया ।"