बुजुर्ग
बुजुर्ग
सुनार की भट्टी से,
सोना जैसा चमक.
निकलता है।
वैसे ही ,
कई धूप छांव की भट्टी।
जलने के बाद,
बुजुर्ग शब्द निकलता है।
बुजुर्ग शब्द आते ही,
दृग (नयन) पर उभर आती,
एक परिपक्व मुरत।
जीसके चेहरे की झूर्रियों में,
समाहित है,
जीवन के खट्टे मीठे अनुभव।
हाथ में है कई उंगलियां,
थामने के निशान।
पग में है निशान,
भटके हुए को,
प्रगति पथ पर ले जाने के।
जीम्मेदारियों के निशान,
कुछ झुकी हुई कमर।
शायद इसी को कहते,
अब हो गई उमर।
उमर के इस पड़ाव पर।
स्मृतिपटल पर अंकित,
जीवन के मान सम्मान।
इस मान सम्मान को,
इस उमर पडाव पर,
पहुंचती है ठेच तो,
दृगंचल (पलकें) हो उठती सजल।
और खो देते अपना,
आत्मविश्वास जीवन के,
अंतिम श्वास तक...