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Pradeep Sahare

Tragedy

4  

Pradeep Sahare

Tragedy

वेटींग टिकट

वेटींग टिकट

1 min
335



रेलवे स्टेशन पर,

लंबी कतार में ।

नंबर आने के बाद ।

मिलता जब वेटींग टिकट ।

ले लेते हम बडी आशा से,

हो जाएगा कन्फर्म अंत में ।

देखते रहते, प्रतिदिन स्थिति,

अपने पीएनआर की।

मन ही मन खुश होते,

एक एक नंबर कम होते देख।

बदलती खुशी मायूसी में,

होता हैं चार्ट प्रीपर्ड ।

हम लटकते वेटींग में ।

मन को ,

फिर समझाते एक बार ।

टीटीई से करेंगे कुछ जुगाड़ ।

लेकर हाथ में टिकट,

खडे होते पॅसेज में ।

टीटीई का इंतजार करते ।

बेवजह की मुस्कराहट,

अंदर से चिड़चिड़ाहट ।

शुरु रहता प्रवास ।

बाथरुम जाने वाले,

फेरीवालों के,

धक्कों के साथ ।

भूलकर अपना रुतबा,

भागते हैं टीटीई पीछे ।

झटकारता ह्रै वह,

किसी अस्पृश्य की तरह ।

खडे होते, फिर अपनी जगह ।

बगुले सी आँखें मुंदकर ।

खत्म होता प्रवास ।

कन्फर्म के इंतजार में ।

सुर्ख आँखों से,

थके हुए दर्द बदन से ।

बहुत कुछ सिखा देता,

वेटींग का प्रवास,

अपने जीवन में ।


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