कुछ देर बाद.......
कुछ देर बाद.......
फिर कुछ देर बाद
ऐसा होने लगा
कोई पराया भी अपना सा लगा
अब न जाने क्यू
फिर से जख्म के घाव भरने लगे
नए रिश्ते लोगों से जुड़ने लगे
एक बार फिर से ज़िंदगी के खेल में
हम ऊही फिसल गए
एक बार फिर रिश्तों के इंद्रजाल में हम फस गए
पता न चला की
दुनिया के भीड़ में
हर एक चेहरे से बंधी रिस्थो के कोई मोल नहीं
क्यू कि हर एक रिश्ता मां के जैसा तो नही
खुद टूटकर भी कभी हम रिश्ता संभालते गए
फिर कभी खेद के दरारो को हम सिलाई करते गए
एक बार फिर
जब हमें समझने की बारी आई
महफिल में न कोई अपना लगा
न ही अपनी बातों की अहमियत
महफिल में मजजूद लोगों को लगी
एक बार फिर
ज़िंदगी के रफार में
मुस्कान के बदले आसूं मिली
बस फिर से खामोस होने की वजह मिली
न कोई था न कोई हैं न कोई रहेगा
जिंदगी की गाड़ी हैं
मेरे न होने से भी चलता रहेगा
एक बार फिर दुखो के बादल मंडराने लगे
बरसात में सादगी के बदले मायूसी बरकार रहने लगे
जब खत्म हुई लिखनी अपनी
हजार रिश्ते टूटने लगे और
हम खुद्से फिर से मिलने लगे।
