आस्था
आस्था
आस्था के बवंडर में,
क्या आम, क्या खास ।
किसी तरह,
मिले भगवान ,
यही उसका प्रयास ।
प्रयास में,
नहीं रखता कुछ कमी ।
पता है उसे,
मंदिर का पूजारी ।
झटके से पुजा ,
खींचेंगा हाथ से,
गार्ड बजाएंगा शिटी ।
देगा धक्का या ...
लगाएंगा आवाज,
"आगे बढो,आगे बढो की .. "
फिर भी वह,
पहुंचता मंदिर ।
स्वेच्छा का नाम देकर ।
उँची उँची पहाडी चढ़कर ,
लंबी लाईन में,
घंटो खड़ा रहकर ।
होता हैं उत्साहित,
दरबार में रखी,
छोटी सी मूर्ति का ।
छोटासा चेहरा ,
छोटेसे कोने का,
दर्शन पाकर ।
करता हैं जयकारा,
समस्त शरीर की,
उर्जा जीभा पर लाकर ।
होता प्रसन्न, होता हैं धन्य ।
शिकायत होती हैं,
व्यवस्था से उसे ।
लेकिन भगवान से नहीं ।
क्योंकि,
कल पड़ना हैं,
उसी से उसका वास्ता . . .
और यही हैं ,
आस्था ...
