जब सर्दी कहेगी
जब सर्दी कहेगी
जब सर्दी अपनी ठंडी फुसफुसाहट में कुछ कहेगी,
वो कहेगी चांदी जैसी बर्फ की कहानी,
गुनगुनाएगी गीत वो पेड़ों के बीच की हवा के
और सजा देगी ठण्ड से कांपते पत्तों को सपने शब्दों में।
हाँ! कोई आह भरती आवाज़ भी होगी उसमें,
या फिर कोई भजन जिसे सुन ठंडा हो दिल।
चाँदनी रातों को कहेगी और कहेगी शर्मीली धूप को,
कहेगी क्षणभंगुर सन्नाटों की आत्माओं को भी।
बुन लेंगे उसके शब्द बर्फीले धागों की रजाई ,
और सुला देंगे धरती पे बर्फीले बिस्तरों को।
रुकी हुई नदियों को कहेगी,
और कहेगी अपनी तानाशाही।
यह भी कहेगी कि उसके नीचे, बीज आराम कर रहे हैं,
प्रेरणा के पवित्र खोज के और शांत अनुग्रह के।
क्योंकि सर्दी निराशा की नहीं,
बल्कि वसंत के सपनों की बात करती है।
तो ध्यान से सुनो सर्दी की साँस को,
धुंध भरी आसमान में उसकी आवाज़ को,
उस ठंडी आवाज़ में एक गर्मजोशी भी है,
तानाशाही में शांति का उपहार भी।
तुम सुनोगे ना?!
