ग़ज़ल
ग़ज़ल
किसी और उम्र को चला जाऊंगा,
मैं ही हूँ वो, जो पहला जाऊंगा।
काम कहते रहो तुम, करता रहूंगा,
कुछ मांगूं तो, दिया बहला जाऊंगा।
धूप की चिट्ठियाँ रखीं हैं जेब में मेरे,
आँखों की लहरों से वे जला जाऊंगा।
कोई मौसम नहीं पूछेगा हाल मेरा,
खामोशी में खुद ही मैं पला जाऊंगा।
मैं जीता भी नहीं, हारा भी नहीं हूँ मैं,
शाम हूँ, रात से पहले चला जाऊंगा।
