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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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हम भी - हम नहीं

हम भी - हम नहीं

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कुछ सालों पहले,
एक अनजाना राही,
आया था दूर किसी गहन अंधकार से,
सौरपथ को छू कर
लौट गया अपने अनंत सफर पर।

न उसने दस्तक दी,
न ही परिचय बताया-
बस गुरुत्व के स्पर्श से
हमारी कल्पनाओं को झकझोर गया।

वह ‘ओमुआमुआ’ था,
न कोई यान, न दूत, न शत्रु,
बस ब्रह्मांड की रेत में
उड़ता एक पत्थर,
एक एलियन ऑब्जेक्ट।

हमने उससे नहीं पूछा, "क्या तुम्हारी दुनिया में भी देशों की सीमाएँ हैं?"
नहीं सोचा, "क्या उसके ग्रह पर भी धर्म के नाम पर खून बहता है?"
हमने तो बस डरा दिया खुद को, "कहीं ये हमें मिटा न दे!"

पता नहीं हम एक एलियन ऑब्जेक्ट से डरते हैं या नहीं,
लेकिन,
सच यह भी है कि,
हम एक दूसरे के लिए ही ओमुआमुआ से हैं,
 'एलियन' सरीखे।

सीरिया के शरणार्थी क्या ओमुआमुआ से कम अजनबी हैं?

यूक्रेन-रूस युद्ध—क्या यह "अंतरिक्षीय युद्ध" से कम विध्वंसक है?

हम किन एलियन से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं?
जब धरती खुद जल रही है।
अपना परिवार भी देख लें।

हम AI से बातें करते हैं, और पड़ोसी से नफरत।

हमने बनाए "प्रोटोकॉल" मंगल पर जीवन खोजने के,
पर गाज़ा और सूडान में मरते बच्चों के लिए कुछ भी नहीं।

हम जेम्स वेब टेलीस्कोप से ब्रह्मांड को स्कैन करते हैं,
"सुसाइट" से घरों में लाशें कैसे पैदा हो रहीं पता नहीं, और हम "विज्ञान" की बात करते हैं।

अगर अब 'ओमुआमुआ' फिर आए, 

कल कोई ब्रह्मांडीय सभ्यता यह पूछे,
"तुम्हारी दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ क्या है?"
तो हम क्या दिखाएँगे?

मेटा का मेटावर्स या काशी की गलियों में गूंजते मंत्र?

न्यूक्लियर मिसाइल्स या नाचता हुआ पेचूकली का कलाकार?

सोचो ज़रा,

"तुम्हारे पास जो है, उसे संभालो...
...क्योंकि ब्रह्मांड में शायद तुम उस अकेले ग्रह में हो,
जहां 'कविता' लिखी जाती है।


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