जेब में
जेब में
रिश्तों को
वो सिक्कों-सा जेब में रखता था,
सोचता - यही सही जगह है,
ज़रूरत पड़ी तो निकाल लो, वरना पड़े रहें यहीं।
और आया एक वक़्त,
किस्मत ने जेब उधेड़ दी।
जो कुछ भी था,
सारा निकल कर गिर गया -
सड़क पर।
रुपए तो राहगीरों ने समेट लिए,
मगर रिश्ते...
ठोकरों के धूल-धक्कड़ में,
बिखरते रहे,
किसी ने न उठाए।
उसने तब जाना -
काश! ये रिश्ते
जेब में नहीं,
दिल में रखे होते।
अब जेब भी खाली है,
और दिल भी...
सन्नाटे का वज़न
सबसे भारी हो गया है।
