सफलता का स्वाद
सफलता का स्वाद
मां, तुम्हारे दुःखों का अंत हुआ,
तुम्हारा बेटा विजयी हुआ,
सरकारी नौकरी मिल गई मुझे,
बाबूजी का सीना गर्व से चौड़ा हुआ।
तुम सबने मुझे पढ़ाने में जितने भी दुःख झेले हैं,
इस सफलता को दिलाने में, कितने पापड़ बेले हैं,
अब उसका फल मिल गया,
सुख का सूरज निकल गया,
न करनी पड़ेगी अब हाड़-तोड़ मेहनत,
बाबूजी के कंधे को सहारा मिल गया।
कुछ महीने का ही अब साथ है अपना,
फिर किसी दूसरे शहर की ओर है चलना,
छुट्टी में घर मैं आऊंगा, इस छप्पर को महल बनाऊंगा।
मां, कल मेरी ट्रेन है, रात नौ बजे निकलूंगा,
बांध देना जरा फिर से वो पोटली,
रख देना उसमें थोड़ा अपना प्यार, दुलार,
और ढेर सारा आशीर्वाद।
तुम्हारी दुआ साथ रहेगी मेरे, उस अजनबी शहर में,
मार्गदर्शन करेगी मेरा, जब भी मैं भटकूंगा अधर में,
गुड़, लइया, आचार, दाल और चावल,
ले जाऊंगा यहीं से,
महंगाई बहुत हो गई है नए शहर में,
सौ खर्चे हैं नए, नए शहर में।
पानी, बिजली, हवा, सबके पैसे लगेंगे,
कोई अपना न होगा वहां, सब नए चेहरे दिखेंगे,
मां, ये कुछ पैसे अपने पास तुम रख लो,
इससे नया एक मोबाइल ले लो,
जब भी याद आए तुमको मेरी,
बाबूजी से कहकर, मुझे कॉल कर लो।
मेरे दूर जाने से घबराना नहीं,
तुमने ही बताया था, "ज़िंदगी है यही",
मेरी तुम तनिक फिकर न करना,
दवाइयां अपनी सारी समय पर लेना।
