रेत
रेत
समंदर के किनारे की,
रेत कहती है समंदर से
" हे महामहिम,
तेरा विस्तार है अपार,
अनंत है गहराई ၊
तेरी लहरों के आगे,
सब है बेकार ၊
तुम साक्षात हो ईश्वर ၊
लेकिन मेरे पास आते ही ,
तुम्हारी उफान भरी लहरों में,
आ जाती है नमी ၊
स्पर्श कर मेरा,
वापस समाती आपके अंदर ၊
क्या आपको लगता,
मुझसे ड़र ?"
समंदर बोला,
विनम्र होकर
" चूंकि तू ने कहा है,
मुझे ईश्वर ၊
तो हूं मै ईश्वर ၊
इसलिए रहता हूं,
अपने सीमा के भीतर ၊
जीस दिन मेरी सीमा का,
सब्र का बांध टूट जाएगा ၊
चारों तरफ,सैलाब आएगा ၊
और यह संसार ,
तेरे टीले की तरह,
बह जाएगा ၊
