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डॉ. प्रदीप कुमार

Inspirational

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डॉ. प्रदीप कुमार

Inspirational

भौगोलिक कविता

भौगोलिक कविता

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जब हम स्कूल में भूगोल पढ़ते थे,

भूगोल तब भी वही था, 

जैसा आज है।

तब शिक्षक जब पृथ्वी से चांद की दूरी नापते थे,

हमको सूर्य और चन्द्र ग्रहण के विषय में बताते थे,

तब हमने कुछ-कुछ सिद्धांत को समझा था,

बहुत कुछ समझना समय पर छोड़ दिया था,

हमें पता था हम अभी और कई साल इसी पृथ्वी पर रहेंगे,

चांद को भी देखेंगे, और सूरज भी तकते रहेंगे।

पर जो नहीं पता था वो थी मिल्की वे, गैलेक्सी,

और न जाने क्या-क्या बला,

प्रकाशवर्ष की दूरी भी उनमें से एक थी।

आज जब विभिन्न माध्यम से हम जान गए हैं,

कि हमारी पृथ्वी और हम हैं एकदम नगण्य,

अस्तित्व हमारा ब्रह्मांड में है एक तिनके-सा।

चांद पर हम कुछ सेकंड में पहुंच सकते हैं,

मंगल पर कुछ मिनटों में,

ये कमाल संभव है यदि हम चले प्रकाश की चाल से।

अरे वाह! हम तो बहुत तेज़ चल सकते हैं,

पर रुकिए।

इतनी तेज चलने पर भी आपको,

एक आकाशगंगा की दूरी तय करने में,

कई मिलियन साल लग जाएंगे,

जब आप हमें वहां से देखेंगे,

तो हम बीस साल पहले वाले कवि नज़र आएंगे।


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