STORYMIRROR

Umesh Shukla

Tragedy

4  

Umesh Shukla

Tragedy

सिर्फ अपना उत्थान

सिर्फ अपना उत्थान

1 min
373

मेरी पहली कमाई कब

ये राह देख रहे असंख्य

संवेदनहीन हो चुके हैं अब

लोकतंत्र के तीनों ही स्तंभ


इनकी चिंता में शुमार है

सिर्फ अपना ही उत्थान

ऐसे में देश के करोड़ों युवा

रोजी के लिए हैं हलकान


सरकार के नुमाइंदों को बस

कुर्सी और धनार्जन की फ़िक्र

संसद,विधानसभाओं में होता

नहीं युवाओं की पीड़ा का जिक्र


हे ईश्वर मेरे देश के युवाओं

को दीजै सन्मति का उपहार

अपने अधिकारों को पहचान

कर चुनें वो उपयुक्त सरकार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy