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Umesh Shukla

Tragedy

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Umesh Shukla

Tragedy

हुईं मानवीय संवेदनाएं विनष्ट

हुईं मानवीय संवेदनाएं विनष्ट

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कभी हर व्यक्ति सुनता

रहा बुलबुलों का गीत

पर अब की पीढ़ी नहीं है

बुलबुलों से ही परिचित

आज युग की आपाधापी

में खोए हुए हैं सब युवा

प्रकृति औ उसकी छटा से

उनका सामना नहीं हुआ

पशु, पक्षियों के जगत से

अनभिज्ञ अधिकांश जन

विकास के नाम पर जुटा

रहे बस भौतिक संसाधन

सूचना तकनीक के इस दौर में

हुईं मानवीय संवेदनाएं विनष्ट

ऐसे में लगातार बढ़ता जा रहा

चहुंओर मानव समाज का कष्ट

काश हम सभी मिल जुलकर

बनाते समाज को संवेदनशील

ताकि लोलुप शक्तियां कभी न

पाएं मानवीय मूल्यों को लील।



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