डी टी सी बस का सफ़र
डी टी सी बस का सफ़र
मैं नहीं भूलूंगी वो डी टी सी बस का सफ़र
जिसे याद करके हंस देती हूं बरबस
भीड़ से भरी बस में कंडक्टर तक पहुंचना था एक जंग
हैरान थी मैं देख के डी टी सी का ये रंग
सोचा पड़ोसी को पैसे से कर टिकट मंगवा लूंगी
पर क्या पता था सौ का वो नोट ही गवां दूंगी
ज्यों ही वो सौ का नोट मैंने उसे थमाया
खो गया भीड़ में फ़िर नज़र ना आया
चलो जैसे तैसे मैंने टिकट ली और अपना स्थान बनाया
पर अगले स्टॉप से भीड़ का एक और हुज़ूम उमड़ आया
दिन के समय में अंधेरे से घिर गई
उतरने की जल्दी में मैं बस से गिर गई
फिर सोचा चलो जैसे तैसे सफ़र तो कटा
तभी वहां लगे बोर्ड को देख कर मेरा ध्यान बंटा
वाह री मुद्रिका सर्विस वाह तेरा क्या काम है
सफ़र जहां से शुरू किया था बोर्ड पर वहीं नाम है