दृष्टिकोण
दृष्टिकोण
कैसे दूं परिचय अपना क्या कहूं अपनी पहचान
शायद धरती ज्यादा हरी है मेरी या कुछ कम नीला है आसमान
कुछ अधिक ही चंचल हूं कभी
कभी रहता हूं सर्वथा मौन
मैं थोड़ा अलग हूं पर हूं मैं तुम्हारे समान
कभी तुम्हारी तरह भाग नहीं पाता कभी दूर चला जाता हूं
नहीं रहता दिशा का भान
मैं थोड़ा अलग हूं पर हूं मैं तुम्हारे समान
तुम्हारी बातें समझ नहीं पाता
कभी अपनी बात समझाता हूं
कुछ सुलझाने जाऊं कभी तो और उलझ जाता हूं
सीखता हूं रोज पर कुछ कम रह जाता है मेरा ज्ञान
जी हां मैं थोड़ा अलग हूं पर हूं मैं तुम्हारे समान
तुमसे अलग नहीं तुम्हारे साथ चलना चाहता हूं
तुम्हारी दया नहीं तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं
मुझे सहारा नहीं बस दे दो मेरा आत्मसम्मान
मैं थोड़ा अलग हूं पर हूं मैं तुम्हारे समान
मुझे देखकर यह न पूछो कि यह बेचारा है कौन
दया दृष्टि का पात्र नहीं मैं
बस बदलो अपना दृष्टिकोण
बस बदलो अपना दृष्टिकोण