ख्वाब
ख्वाब
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं
कभी जीत की खुशी
कभी हार का भय दिखाते हैं
कभी मन के अन्तर्द्वंद को कहानी में सजाते हैं
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं
कभी गांव की मिट्टी की ख़ुशबू
कभी बचपन वाली आंख मिचौली
कभी घर के बने पकवान
कभी आंगन में सजी रंगोली
बीते दिनों के सुंदर लम्हों
का आभास कराते हैं
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं
कभी बिछड़े रिश्तों से मिलवा कर
कभी नए रिश्तों की झलक दिखला कर
मीठी सी मुस्कान कभी
कभी आंखों में नमी छोड़ जाते हैं
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं
उमंगों की धूप सुनहरी
कभी चिंता की रात अंधेरी
कभी तेज़ी से भागती जिंदगी
कभी झील के पानी सी ठहरी
हर एक भाव से मन का साक्षात्कार कराते हैं
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं
एक नई दुनिया का मंजर
कभी जादू का सा असर
कभी मंजिल मिलने की खुशी
कभी मीलों लंबा सफ़र
कितने रंग दिखा कर
बस छू मंतर हो जाते हैं
ये ख्वाब भी क्या खूब हैं
बिन कहे बिन सोचे चुपके से आ जाते हैं।
