उम्र...
उम्र...
चांदी की कुछ तारें अब जुड़ने लगी हैं बालों में
कुछ और तजुर्बा बढ़ने लगा हल मिलने लगे सवालों में
कुछ समझ और रोशन हुई एक और शमा जल जाने से
कुछ और सफलता हाथ लगी, यूं बार बार गिर जाने से
कुछ पढ़ी किताबें अनुभव की, कुछ सीखा जाते सालों में
कभी नादानो में गिने गए जो, अब छाने लगे मिसालों में
कभी अपने ही कतराने लगे थे बुरे वक्त के आने से
वो रिश्ते अब गहराने लगे जो लगते थे अनजाने से
कभी हंस कर मुश्किल पार हुई कभी उलझ गए बवालों में
कभी खिलखिला कर हंस दिए कभी मुस्कुराए खयालों में
अब जा कर कहीं अमीर हुए, अनुभव के भरे खजाने से
हर पल को खुल कर जी लें हम, क्या होगा उम्र छुपाने से।
