बेवह्र ग़ज़ल
बेवह्र ग़ज़ल
हमने दीं तुमको सदाएं क्या हुईं।
स्याह रातें सर्द आहें क्या हुईं।।
आप तो कह चल दिए हाफिज खुदा।
हमने मांगी जो दुआएं क्या हुईं।।
अब तलक तो थे हमारे ज़हे नसीब।
गुल शज़र दिलकश फ़िज़ाएं क्या हुईं।।
हर शज़र और गुल में देखूँ आपको।
आपके संग की हवाएं क्या हुईं।।
हम हुए दीवाने जिनके बरमला।
संग रहेंगे वह वफ़ाएं क्या हुईं।।
इक लहर आयी बहाकर ले गयी।
दीदे तर हैं हम बुलाएं क्या हुईं।।
लौट आओ बस तमन्ना इक यही।
हाले दिल बिस्मिल सुनाएं क्या हुईं।।
रंजो अलम आहो फुग़ां हैं जीस्त में।
आ भी जाओ मुस्कराएं क्या हुईं।।
हाले ग़म कह ना सकें बज़्म ए सुख़न।
'मीरा' गाती थी ऋचाएं क्या हुईं।।