बूंद
बूंद
ओ बारिश की बूंद कहाँ से तुम मिलने आ जातीं।
तपती धरती,जलते अम्बर को अमृत छकवातीं।
जलचर थलचर विकल मरुस्थल , त्राहि-त्राहि घबराये।
थके मनुज भी एसी कूलर ,घर आफिस लगवाये।।
सुन पुकार तब द्रवित हृदय से तुम सागर तट जातीं।।
बादल घट आकाश मार्ग से ,जल भर कर ले आतीं।।
मन मयूर तब नर्तक बनकर,हाथ फैला कर कहता।
छिपा हुआ अवसाद हृदय का, बूंदों में मिल बहता।।
भर जाता आह्लाद, उल्लसित प्रकृति ऊर्जा पाती।
चिहुंक चातकी पंख फैलाए, तरु पर आती-जातीं।।
ओ विरहन की सहज सहचरी, कितने साम्य सजाए।
चेहरे पर मुस्कान मृदुल, घट अंखियन बादल छाए।।
विपुल दर्द जब हुआ दर्ज, पीड़ा असहनीय बन जाती।
'मीरा 'को जब मिले कन्हाई, व्यथा नीर हो गाती।।
ओ बारिश की बूंद कहाँ से तुम मिलने आ जातीं।
तपती धरती जलते अम्बर को अमृत चखवातीं।।
