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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२०१; गोकुल में भगवान् का जन्मोत्सव

श्रीमद्भागवत -२०१; गोकुल में भगवान् का जन्मोत्सव

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श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित 

मनस्वी, उदार थे नंदबाबा बड़े 

पुत्र का जन्म होने पर 

उनका ह्रदय भर गया आनंद से।


जातकर्म संस्कार करवाया 

पुत्र का, बुलाकर ब्राह्मणों को

दो लाख गायें दान दीं 

उन्होंने दक्षिणा में उनको।


हर्षोउल्लास ब्रज में हो रहा 

भेंट लेकर हाथों में ग्वाल सब 

नंदबाबा के घर में आये 

गोपियों को भी पता चला तब।


कि यशोधा जी के पुत्र हुआ है 

तो बहुत आनंद हुआ उनको भी 

श्रृंगार कर, भेंट लेकर वो भी 

यशोदा जी के पास चली गयीं।


वहां पहुंचकर नवजात शिशु को 

आर्शीवाद दिया उन सब ने 

मंगलगान कर रहीं सब 

बहुत ऊँचे ऊँचे स्वर में।


ब्रज में बड़ा उत्सव हो रहा 

सभी गोपों को नंदबाबा ने 

वस्त्र, आभूषण, गायें दीं 

सबके सब आनंदित हो गए।


ग्रह्स्वामिनी की भांति रोहिणी जी 

स्त्रिओं का सत्कार कर रहीं 

उसी दिन से ब्रज में आकर 

ऋषि, सिद्धियां अठखेलियां करने लगीं।


भगवान् श्री कृष्ण के निवास तथा 

अपने स्वभाभिक गुणों से 

क्रीड़ास्थान बन गया था 

लक्ष्मी जी का ब्रज ये।


परीक्षित, कुछ दिनों बाद फिर 

नंदबाबा मथुरा को गए 

कंस का वार्षिक कर चुकाने के लिए 

और गोकुल का भार गोपों को दे गए।


वासुदेव को यह पता चला जब 

कि भाई नन्द आये है मथुरा से 

वहां पर वो पहुँच गए 

जहाँ नन्द जी ठहरे थे।


वासुदेव जी को देखते ही 

सहसा नन्द जी खड़े हो गए 

दोनों हाथों से पकड़कर 

ह्रदय से लगा लिया उन्हें।


नंदबाबा प्रेम विह्वल हो रहे 

वासुदेव का मन लगा पुत्रों में 

आनदमंगल पूछकर उनका 

नंदबाबा से ये कहने लगे।


वासुदेव कहें, ये आनंद की बात है 

कि संतान की प्राप्ति हुई तुम्हे 

हम लोगों का मिलना भी हो गया 

सब कुशल तो है गोकुल में ?।


भाई, रोहिणी के साथ मेरा लड़का 

तुम्हारे साथ रहता ब्रज में 

माता पिता तुम्हे ही मानता होगा 

लालन पालन किया यशोधा और तुमने।


नंदबाबा ने कहा, वासुदेव जी 

तुम्हारे कई पुत्रों को मारा कंस ने 

अंत में एक कन्या बची थी 

उसको भी मार डाला था उसने।


इसमें संदेह नहीं कि सुख - दुःख 

भाग्य पर ही अबलम्बित है 

भाग्य ही एक प्राणी का आश्रय 

सुख दुःख का कारण भाग्य ही है।


वासुदेव ने कहा नंदबाबा से 

यहाँ अधिक नहीं ठहरना चाहिए 

क्योंकि आजकल गोकुल में 

बड़े बड़े उत्पात हो रहे।


शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित 

वासुदेव के ऐसा कहने पर 

अनुमति ले गोकुल चले गए 

नन्द जी गोपों को लेकर।



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