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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - २०४; नामकरण संस्कार

श्रीमद्भागवत - २०४; नामकरण संस्कार

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परीक्षित, श्री गर्गाचार्य जी 

कुल पुरोहित थे यदुवंशिओं के 

वासुदेव की प्रेरणा से एक दिन 

नन्द के गोकुल में आये। 


नन्द ने चरणों में प्रणाम किया 

पूछें, क्या सेवा करूं आपकी 

श्रेष्ठ ब्रह्मवेत्ताओं में आप हैं और 

ज्योतिष शास्त्र की रचना की। 


इसलिए मेरे इन बालकों का 

नामकरण संस्कार कर दीजिये 

नंदबाबा की बात को सुनकर 

गंगाचार्य जी ने कहा ये। 


नन्द जी मैं तो प्रसिद्द हूँ 

यदुवंशिओं के आचार्य के रूप में 

तुम्हारे पुत्रों का संस्कार करूँ तो 

लोग सभी फिर ये समझेंगे। 


कि ये तो देवकी के पुत्र हैं 

और तुम तो जानते ही हो 

कि कंस की बुद्धि बुरी है 

पाप ही सोचा करती वो। 


घनिष्ट मित्रता है बहुत ही 

वासुदेव के साथ तुम्हारी 

और देवकी की कन्या से 

जब से कंस ने ये बात सुनी। 


कि पैदा हो गया है 

उसको मारने वाला और कहीं 

सोचे वो देवकी के आठवें गर्भ से 

होना चाहिए था कन्या का जन्म नहीं। 


तुम्हारे पुत्रों का संस्कार जो कर दूँ 

मार डालेगा कंस फिर इसको 

वासुदेव का लड़का समझकर 

बड़ा अन्याय हो जायेगा तो। 


नंदबाबा कहें, आचार्य जी 

चुपचाप केवल एकांत में 

इस बालक का द्विजाति समुचित 

नामकरण संस्कार कर दीजिये। 


औरों की तो बात ही क्या है 

सगे सम्बन्धी भी जो मेरे 

इस बात को जान न पाएं 

मेरी प्रार्थना स्वीकार कीजिये। 


शुकदेव जी कहते हैं, गर्गाचार्य जी 

संस्कार तो करना चाहते ही थे 

इस प्रकार की प्रार्थना को सुन 

संस्कार किया गुप्त रूप में। 


नाम रखा दोनों भाईओं का 

आचार्य जी ने ये था कहा 

यह रोहिणी का पुत्र है 

इसलिए नाम रौहिणेय होगा। 


अपने सगे सम्बन्धिओं, मित्रों का 

आनंदित करेगा अपने गुणों से 

और इसी ही कारण से 

राम भी कहलाएगा ये। 


कोई सीमा नहीं इसके बल की 

अतः एक नाम बल भी इसका 

यादवों और तुम लोगों में 

भेदभाव ये नहीं करेगा। 


लोगों में फूट पड़ने पर 

मेल ये कराएगा, इसलिए 

एक नाम और होगा इसका 

लोग संकर्षण कहेंगे इसे। 


और सांवला सांवला सा जो है 

शरीर ग्रहण करे प्रत्येक युग में ये 

श्वेत, रक्त, पीत ये तीन रंग 

क्रमशः स्वीकार किये पिछले युगों में। 


अबकी बार कृष्ण वर्ण हुआ 

कृष्ण नाम इसलिए हो इसका 

नन्द जी, यह तुम्हारा पुत्र कभी 

वासुदेव के घर में भी पैदा हुआ था। 


इस रहस्य को जानने वाले 

श्रीमान वासुदेव भी कहते इसे 

और भी बहुत से नाम और 

रूप तुम्हारे इस पुत्र के। 


इसके जितने गुण और कर्म हैं 

अलग अलग नाम, सब के अनुसार ही 

मैं तो उन नामों को जानता पर 

संसार के साधारण लोग जानते नहीं। 


तुम लोगों का कल्याण करेगा ये 

आनंदित करेगा गोपों, गौओं को 

मनुष्य जो प्रेम करे इस शिशु को 

बड़े ही भाग्यवान वो। 


किसी प्रकार के शत्रु न जीत सकें 

भीतर या बाहर के इन्हें 

तुम्हारा बालक नारायण समान है 

गुण, संपत्ति, सौंदर्य, कीर्ति में। 


ऐसे समझा कर, और आदेश दे 

गर्गाचार्य जी लौटे वहां से 

बड़ा ही आनंद हुआ था 

नंदबाबा को बात सुनकर ये। 



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