श्रीमद्भागवत -१८४; इक्ष्वाकु वंश के शेष राजाओं का वर्णन
श्रीमद्भागवत -१८४; इक्ष्वाकु वंश के शेष राजाओं का वर्णन
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
अतिथि कुश का पुत्र हुआ
उसका निषध, निषध का नभ
नभ का पुत्र पुण्डरीक हुआ।
पुण्डरीक का क्षेमधन्वा
क्षेमधन्वा का पुत्र देवानीक हुआ
देवानीक का अनीह हुआ और
पारिपात्र पुत्र अनीह का।
पारिपात्र का बलस्थल और
बलस्थल का वज्रनाभ हुआ
यह सूर्य का अंश था
वज्रनाभ का पुत्र खगण हुआ।
खगण से विधृति उत्पन्न हुआ
और हिरण्यनाभ विधृति से
वह जैमिनी के शिष्य थे
योगाचार्य भी वे थे।
कौसलदेशवासी याज्ञवल्कय ऋषि ने
स्वीकार करके उसकी शिष्यता
ग्रहण की थी फिर उनसे
अध्यात्म योग की शिक्षा।
नष्ट कर देने वाला है
यह योग ह्रदय की गाँठ को
तथा परम सिद्धि देने वाला
है यह योग मनुष्य को।
हिरण्यनाभ का पुष्य पुत्र हुआ
पुष्य का ध्रुवसन्धि हुआ
ध्रुवसन्धि का सुदर्शन
अग्निवर्ण सुदर्शन का।
अग्निवर्ण का शीघ्र पुत्र था
और शीघ्र का मरू था
सिद्धि प्राप्त कर ली थी मरू ने
कलाप गांव में इस समय भी वो रह रहा।
जब कलयुग का अंत होगा तब
सूर्य वंश नष्ट हो जायेगा
यही मरू फिर से तब
इस वंश को चलाएगा।
मरू से प्रसुश्रुत, उससे संधि
संधि से अमर्षण का जन्म हुआ
अमर्षण से महसवात और
महसवात से विशवसाहव् हुआ।
विशवसाहव से प्रसेनजीत
तक्षक पुत्र प्रसेनजीत का
तक्षक का पुत्र था जो
बृहदबल उसका नाम था।
परीक्षित, इसी बृहदबल को मारा
तुम्हारे पिता अभिमन्यु ने युद्ध में
हे परीक्षित, इतने नरपति
हो चुके हैं इक्ष्वाकु कुल में।
अब आगे आने वालों के विषय में सुनो
बृहद्रण पुत्र बृहदबल का
उसका उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध
वत्सवृद्ध का प्रतिव्योम पुत्र होगा।
प्रतिव्योम का पुत्र भानु
सेनापति दिवाक भानु का होगा
दिवाक का सहदेव, उसका बृहदशव
भानुमान होगा बृहदशव का।
भानुमान का प्रतिकाशव होगा
सुप्रतीक प्रतिकाशव का
सुप्रतीक का मरुदेव, उसका सुनक्षत्र
सुनक्षत्र का पुष्कर, अंतरिक्ष होगा उसका।
अंतरिक्ष का सुतपा पुत्र होगा
अमित्रजीत पुत्र सुतपा का
अमित्रजीत का बृहद्राज, उसका बर्हि
बर्हि से कृतन्जय, उससे रणंजय होगा।
रणंजय के फिर संजय होगा
संजय का शाक्य, शुद्धोद उसका
शुद्धोद का लांगल, उसका प्रसेनजीत
प्रसेनजीत का क्षुद्रक होगा।
क्षत्रक के रणक, रणक के सुरथ
और सुरथ के इस वंश के
अंतिम राजा सुमित्र का जन्म हो
वंशधर होंगे ये सब वृहदबल के।
इक्ष्वाकु का वंश ये
रहेगा सुमित्र तक ही
और सुमित्र के राजा होने पर
कलयुग में समापत होगा ये वंश ही।
