कहॉ गए वो लोग
कहॉ गए वो लोग
#SMBoss
ये कथा है, बहुत पुरानी
दशरथ जी की तीन थी रानी
कौशल्या, सुमित्रा, कैकयी
पतिव्रता सुुुशील गुुण खानी ।
अति पावन, मन भावन
चन्दन कथा सुनाते हैं
जिनकी स्तुति ज्ञानी ध्यानी
देवा सब मिल गाते हैै।
राम लखन भरत शत्रु घन
ये चारों राजा के रतन धन
अल्प काल विद्या सब पाई
नीति निपूर्ण चतुर हुए भाई।
एक दिन गुरु वशिष्ठ सेे
सविनय सादर बोले राजा
शुभ मुहर्त प्रभु देेउ बताई
जा दिन राम हुुुईहै अब राजा ।
गुरु वशिष्ठ किन्हीं शोध
शुभ दिवस दीन्ह दर्शायी
सुन राजन हर्षित भये
भेजहि दूत सुुमन्त बुलाई ।
सुनत सुुुखदसन्देश
अति हर्षित भई महतारी
राज तिलक श्री रामका
देखन को उत्सुक त्रिपुुरारी ।
ये सन्देश सुुनत ही मन्थरा
कुटिल योजना लीन्ह बनाई
रानी के भवन गई
रानी को सब चाल बुुझाई।
भेज राम को बन में
भरत को मिले ये ताज
जा शयन कर कोप भवन
रूप विचित्र तू साज ।
राजा के संज्ञान में
आई जब ये बात
उनके ह्रदय पर छा गई
दिन में काली रात ।
रानी ने राजन को
वचन दिलाया याद
आज वचन पूरा करो
यही है फरियाद ।
आज मागती हु वही दोनो बरदान
राम को बनवास दिजिए
भरत का करके राजतिलक
रघुकुुुल का रखिये मान ।
मान लिया प्रिय बात तुम्हारी
भरत के सर पर ताज
पर काहे को दे रही
राम को वन का राज ।
मात पिता आज्ञा सर धारी
बन गमन को करन लगे
महा पुरूष राम तैयारी
संग चले लखनलाल सीता सुुुकुमारी ।
हे राम हे राम कहत राजन
त्याग दीन निज प्रण
ऐसे पुत्र कहाँ मिलिहै
जो होवऐ राम समान ।
भरत आए ननिहाल से
सुन पूरा व्रतांंतभरत हुए बेहाल
चल गई माता पर
दासी की कुटिल चाल।
भरत बोले अति रोष मेंं
तुुुझको माता कहन में
आवत है मोहे लाज
राम बिना सब सुना तुने मांंगा जो ताज ।
भरत मनावन पहुंचे बन को
बहु भान्ति प्राथना कीन्ह
विदा कीन्ह श्री राम भरत को
चरण पादुका दीन्ह ।
त्याग दीन्ह वैभव सुुुख सारे
वैरागी भरत कुमार
प्रज्ञा सेवा करन लगेे
सर पर पादुका धार ।