एक घना दरख्त था वो
एक घना दरख्त था वो
मुझे अपने कन्धे पर बिठा कर
बस्ती मे टहलता रहा
अँगूली पकड़ कर चलना सिखाता रहा
अश्क भरे थे आँखों मे, पर गुनगुनाता रहा।
अपने खर्चो मे कटौती कर
मेरे लिए जलेबी, लेमनचूस लाता रहा
खुद गुरबत की तपिश मे झुलसता रहा
पर मुझे शहजादा बनाता रहा।
मुझे माँ की ममतामयी गुस्से से बचाता रहा
गोद की पालकी मे पाठशाला पहुचाता रहा
पुचकारते, दुलारते मुझे
लिखना पढ़ना सिखाता रहा।
दुनिया के सब रिश्ते जीरो
मेरी माँ मेरी दुनिया
मेरे पिता मेरा आदर्श
मेरे लिए असली हीरो।
जिंदगी की तपिश में
छाव था वो
एक घना दरख्त था
जिंदगी के सफर में पड़ाव था वो।
पिता के चरण कमलो पर
शत 2 नमन
चन्दन पहुँचाता