परी और राजकुमारी
परी और राजकुमारी
आओ बच्चों तुम्हें सुनाती हूँ परी की एक कहानी,
दूर देश में, रहता था एक राजा और उसकी रानी,
उस राजा की दो बेटियांँ, बड़ी सुंदर और सुशील,
दया दोनों के दिल में और मीठी सी उनकी वाणी।
माता-पिता की लाडली थीं, दोनों राजकुमारियाँ,
गुणी, मणी नाम उनके, अलग थी उनकी दुनिया,
मणी खोई रहती हरदम फूल पत्ती बाग बगीचों में,
गुणी के ख्यालों में तो रहती परी लोक की परियांँ।
उठते-बैठते, सोते-जागते बस परियों की ही बातें,
आसमां में तकते हुए कटती, कितनी उसकी रातें,
कभी माता, कभी पिता, कभी पूछती सखियों से,
बताओ कहांँ रहती हैं परियांँ कैसी उनकी पोशाकें।
किसी की भी बातों से कम न हुई मन की हलचल,
परियों की दीवानी, वो राजकुमारी बड़ी ही चंचल,
ख़्वाबों में परियों को देख होठों पर आती मुस्कान,
जैसे-जैसे दिन बीते, इच्छा हुई उसकी और प्रबल।
सुना था उसने किसी से, परियाँ आती-जाती वहाँ,
रंग बिरंगे खूबसूरत पुष्पों की, महक होती है जहांँ,
निकल पड़ी वो राजकुमारी मन में लेकर जिज्ञासा,
आज तो जान कर ही आऊंँगी, परियांँ रहती कहांँ।
महल से दूर सुनसान में, था एक सुंदर सा उपवन,
परियों को देखने की लालसा में, पुलकित था मन,
देखा इधर-उधर कोई न था, थी बस एक चिड़िया,
बैठी थी थोड़ी शांत, शायद ज़ख्मी था उसका तन।
दयालु गुणी ने पास जाकर, जब उसको सहलाया,
चहकने लगी चिड़िया, हाल उसको अपना बताया,
बोलती चिड़िया देखकर अचंभित हुई राजकुमारी,
डर के मारे उसने चिड़िया को, खुद से दूर भगाया।
महल लौटने को दौड़ी, तो चिड़िया ने उसे पुकारा,
रुको राजकुमारी डरो ना मुझसे मैं हूंँ परी सितारा,
परिवर्तित हुई मैं चिड़िया में एक दुष्ट की दुष्टता से,
किसी दयावान के हाथों परी रूप मिलेगा दोबारा।
निकाल दो मेरे पंखों में, फंँसा हुआ है जो तिनका,
उसी से तो मैं चिड़िया बनी,सारा खेल है उसी का,
तुम हो बड़ी दयालु गुणी, तुमसे ही होगा ये उद्धार,
विश्वास करो मुझ पर, ये सच है, नहीं इसमें धोखा।
क्या सच की तुम परी हो, सुन बोली राजकुमारी,
चिंता ना करो तुम, मैं ज़रूर मदद करूंँगी तुम्हारी,
जैसे ही उसने उसके पंख से, निकाला वो तिनका,
चहुंँओर फैला एक प्रकाश उज्जवल और सुनहरी।
दिख रहा था कुछ भी नहीं इतना तीव्र था प्रकाश,
आंँख खुली तो जादू की छड़ी लिए, परी थी पास,
खुशी और उमंग से झूमकर नाच उठी राजकुमारी,
परी को देख आँखों पे नहीं हो पा रहा था विश्वास।
सुनहरे बाल, चमकती आंँखें, सुनहरी थी पोशाक,
बिल्कुल वैसी ही ख़्वाबों में देखी उसने जैसी बात,
करने लगी ढेर सारी बातें,वहीं बैठ परी सितारा से,
सुनने लगी कैसा परियों का दिन, कैसी होती रात।
कैसा है परी लोक, कैसी दिखती परियों की रानी,
परी सितारा ने गुणी को सुनाई परियों की कहानी,
जादू से होता है सब कुछ वहांँ, जादू की वो नगरी,
जादू की छड़ी होती है, हर परी की खास निशानी।
परी की सारी बातें सुन रही थी वो ध्यान लगाकर,
मन में ही सोचने लगी, मैं भी रहूंँ परीलोक जाकर,
किसी ख़्वाब से कम नही थ गुणी के लिए ये सब,
मुश्किल लग रहा था उसका, जिससे आना बाहर।
तभी अचानक परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई,
जादू से फिर हाथ में एक सुनहरी पोशाक वो लाई,
गुणी को देकर बोली मेरी तरफ़ से तुम्हारा तोहफ़ा,
तुम्हें जो भी दे दूँ कम है, है बड़ी तुम्हारी अच्छाई।
गुणी तुम्हारी मदद से, मुझे ये तन मिला है दोबारा,
मांग लो जो भी मांगना है, देगी ज़रूर परी सितारा,
नहीं चाहिए कुछ भी बस तुम साथ मेरे सदा रहना,
ये कहते हुए खुशी से चमक रहा था उसका चेहरा।
धरती पर साथ तुम्हारे रहना यह तो है संभव नहीं,
परीलोक के नियमों में इस बात की इजाज़त नहीं,
पर तुमने मेरी मदद की इसलिए निराश न करूंँगी,
जब भी दिल से याद करोगी मुझको पाओगी वहीं।
लो यह मोती की माला इसको पास अपने रखना,
इसकी मदद से जब चाहो, तुम मुझको बुला लेना,
रंग बिरंगे फूल, फूलों में खुशबू है खुशबू की माला,
इस माला की मोती छूकर बस इतना सा है कहना।
फिर परी से विदा लेकर, महल लौटी राजकुमारी,
परी से मिलकर,जिज्ञासु मन की खिली फुलवारी,
थोड़ी सी थी, उदास ज़रूर, परी से विदा होने पर,
किन्तु माला देख, खुशी से भरने लगी किलकारी।