बचपन
बचपन
क्या दिन थे जब हम खो खो में
बन्दर से उछला करते थे
और बीच सड़क में कंचों के
हम गड्ढे खोदा करते थे
अब पब जी वाली दुनिया में
खो खो कहाँ खेला जाता है
गूगल के रंगीं गोले में
कंचा मेरा खो जाता है
वो खेल पुराना खो खो का
अब भी मुझको दौड़ाता है
वो गोल सा कंचा बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
उस वी सी आर के आने पर
कैसे हम न्यौता देते थे
कमरा सारा भर जाता था
सब चुप्पी साधे रहते थे
अब इंटरनेट है मुट्ठी में
न्यौता फ़ेसबुक पर आता है
फ़िल्में लाखों मोबाइल में हैं
कमरा खाली रह जाता है
वो वी सी आर में कैसेट का
फँसना अब तक तरसाता है
वो कमरा अपने बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
पापा की मार के डर से हम
आलार्म बिना उठ जाते थे
जाना होता था रोज़ मगर
स्कूल से हम थर्राते थे
अब सोते सोते बेबी यूँ
पूरा रेडी हो जाता है
इस पिकनिक जैसे स्कूल में
बच्चा जाने को ललचाता है
आलार्म कहाँ अब पापा का
मुझे तड़के रोज़ जगाता है
वो डर मासूम सा बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
होती थी शाम तो आँखों से
सिग्नल सबको मिल जाते थे
एक टोल में सारे मिल करके
गालियाँ सारी नाप आते थे
अब शाम हुई तो ट्यूशन का
सिग्नल टेंशन दे जाता है
और टोल है मेरा व्हाट्सएप पर
जो दुनियाँ भर नाप आता है
वो तेज़ इशारा आँखों का
मुझको अब तक मचलाता है
वो टोल भयंकर बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
तब गर्मी में सबके बिस्तर
छत पर एक लाइन से लगते थे
बचने को आख़िरी बिस्तर से
हम बीच की राह पकड़ते थे
अब छत पर सोता कोई नहीं
कमरा सबका ठण्डहाता है
डर फुर्र है आख़िरी बिस्तर का
अब सेपरेट रूम मिल जाता है
अब जून महीना गर्मी का
छत पर सूना रह जाता है
वो बिस्तर लम्बा बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
क्या दिन थे जब अपने कुटने का
डंडा हम ही लाते थे
खर्चे को मिलते पाँच रुपये
उसमें भी कुछ बच जाते थे
अब ऊँगली भर लग जाने पर
टीचर ससपेंड हो जाता है
और सौ का नोट भी पिज़्ज़ा के
ऑर्डर में कम पड़ जाता है
वो डंडा अब भी कभी कभी
सपनों में छप सा जाता है
वो बचा रुपैया बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
तब दादी माँ के चश्मे से
बादल सतरंगी दिखते थे
और चूल्हे वाली राख के आलू
खाने को हम लड़ते थे
अब दादी माँ के चश्मे से
बादल कुछ धुँधला दिखता है
और स्वाद राख के आलू से
बेहतर सैंडविच में आता है
दादी का चश्मा उतर गया
अब उनको कुछ ना दिखता है
लेकिन वो आलू बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है
वो दिन थे जब हम प्रेम पत्र भी
प्रार्थना पत्र सा लिखते थे
और उत्तर पाने को उसके
पीछे महीनों तक फिरते थे
अब प्रेम, पत्र के बदले
इंस्टाग्राम पे ज़ाहिर होता है
और उत्तर लड़की का
इनबॉक्स में हार्ट शेप में आता है
लेकिन अब भी काग़ज़ पर मन
जाने क्या क्या लिख जाता है
वो प्रेम सुहाना बचपन का
मुझे बचपन याद दिलाता है।
