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जाने क्या क्या लिख जाता है वो प्रेम सुहाना बचपन का मुझे बचपन याद दिलाता है। जाने क्या क्या लिख जाता है वो प्रेम सुहाना बचपन का मुझे बचपन याद दिलाता...
इन्सान का टुकड़ा हूँ मैं मुझको बसा इन्सान में ! इन्सान का टुकड़ा हूँ मैं मुझको बसा इन्सान में !
होगा जब सब ओर तमाशा गीत वही फिर गाऊँगा ! होगा जब सब ओर तमाशा गीत वही फिर गाऊँगा !