STORYMIRROR

Vikram Choudhary

Abstract

4  

Vikram Choudhary

Abstract

तमाशा

तमाशा

1 min
351

लाख पते की बात बाँटने

एक पते पर आया हूँ !

बेज़ारी का जाल काटने

लफ़्ज़ कटारी लाया हूँ !


होगा जब सब ओर तमाशा

गीत वही फिर गाऊँगा

अय्याशी  के गाल की गुत्थी

नाप नाप खुलवाऊँगा !


जां निगलेगी बंजर धरती

इन्सां जब अँधा होगा

फल पकते ही ग़ाज़ गिरेगी

हर बगिया दंगा होगा !


और बँटेंगी गर्म सलाखें

जिस्म पे कपड़ा ना होगा

हर नुक्कड़ बस्ती में डंका

धर्म का बेढंगा होगा

कान में लोरी मौन रहेगी।


हर बच्चा गूँगा होगा

रात खुरों की चोट सहेगी

यम आज़ाद खड़ा होगा

चींख नहीं निकलेगी, फिर भी

मौत का सन्नाटा होगा !


और लुटेगी लाल चुनरिया

घोर सियासी कोड़ों पर

वार करेगी गरज के हिंसा

बोझ की मारी नारी पर

बच्चे बूढे सब राह तकेंगे

कटेंगे मर्दों के जब सर !


और आसमान से गिरेंगी परियाँ

ख़ाब धराशाही होंगे

नींद में बनते ताजमहल

खण्डहर की धूल चढ़े होंगे

रात बड़ी गहरी होगी

पलकों के द्वार खुले होंगे !!


चौखट पे कुत्तों की दस्तक

दहशत में भीग रही होगी

फाँके में घटते दूध को माँ

करवट से सींच रही होगी

लम्बी होंगी दिन की घड़ियाँ

इच्छा बेजान पड़ी होगी !


तब तोड़ ग़ुलामी के पिंजरे को

दौड़ के पंछी आयेंगे

दाना तिनका छुपकर थोड़ा

मेरे घर को भी लायेंगे !


मैं रहम के नंगे हाथों को

बेशर्म खड़ा फैलाऊँगा

पँछी के पूछे जाने पर

आदम की ज़ात बताऊँगा !


और कहूँगा पँछी से ले चल

अपनी ख़ामोश ख़ुदाई में

नर हुआ मदारी पैसों का

मन की मरदूत बुराई में !


मैं तान के चादर फ़ुर्सत की

चुपचाप कहीं सो जाऊँगा

जब खुलेंगी आँखें ज़िल्लत में

काग़ज़ और कलम उठाऊँगा !


होगा जब सब ओर तमाशा

गीत वही फिर गाऊँगा !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract