लगता है ,फागुन आ रहा है धीरे धीरे है, अंबर सजा हुआ सतरंगी बहारों से लगता है ,फागुन आ रहा है धीरे धीरे है, अंबर सजा हुआ सतरंगी बहारों से
देख कर शृंगार धरा का कमुदनी अकुलाती हिय में देख कर शृंगार धरा का कमुदनी अकुलाती हिय में
मेरे साथ बनी रहना मैं इसे फिर मिटा दूँगा। मेरे साथ बनी रहना मैं इसे फिर मिटा दूँगा।
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा। तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा।
फिर से वापस आ जाये वो मुस्कुराती खिलखिलाती सुबह। फिर से वापस आ जाये वो मुस्कुराती खिलखिलाती सुबह।
वो खत मैं अक्सर आज भी तन्हाई में पढ़ लेता हूं, वो खत मैं अक्सर आज भी तन्हाई में पढ़ लेता हूं,