तुम्हारी यादों में हैं सन्नाटा
तुम्हारी यादों में हैं सन्नाटा
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा
दिन आज फिर, चादर ढककर सोएगा
जो पहले था उजला, वो फिर खोएगा
वीरान-सा खंडहर, वीरान गली होगी
धुंधली सी छाए में, फिर कोई सोएगी
छाए में सो कर, बस वो ये कहेगी,
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा
पतली सड़क पर कोई फिर मिलेगा
दिल की अधूरी बातें कहेगा
थी वो जो रानी वो फिर मिलेगी
था वो जो राजा वो फिर रोएगा
लिपटकर रानी से, वो ये कहेगा
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा
जब नर झींगुर तेजी से पैरों को रगड़ेंगे
तब 'झीं' की तेज आवाज निकलेंगे
मादा झींगुर आकर्षित फिर होंगी
प्यार में उनके फिर वो खोएंगी
बिछड़ते ही, बस वो ये कहेंगी ,
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा
किताबें भी होंगी, कहानी भी होगी
अधूरी उनकी जवानी भी होगी
राजा कहेगा, तू चल मेरी रानी
तेरे बिन मेरी, सुनी राजधानी
तब रानी कहेगी, सुनो मेरे राजा
तुम्हारी राजधानी में, कोई न हीर-रांझा
'अब जाने भी दो मेरे,
रूह को दरिया में
मैं मर ही गयी हूँ, फिर,
खो जाने दो उस दुनियां में '
तब राजा बोलेगा, वो मेरी रानी
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा
जैसे ही "दिन" चादर हटाएगा
आसमाँ में उजाला पसर जाएगा
लेकिन, उस घड़ी कोई राजा न रहेगा
उसकी फिर कोई राजधानी न बचेगा
खत्म होता उसका राज्य फिर ये कहेगा,
तुम्हारी यादों में पसरा सन्नाटा
झींगुर का झीं- झीं हैं ढेर सारा।