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शशि कांत श्रीवास्तव

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शशि कांत श्रीवास्तव

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फागुन -आ गया

फागुन -आ गया

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देखो तो ...

क्या ...फागुन आ गया है ,

पेड़ों में फूट रहीं हैंकोपलें नवपलल्व की

वहीं --आमों के पेड़ों पर आ रही है मंजरी

जिसकी, भीनी भीनी खुशबू फैल रही है

इन फिजाओं में ....

लगता है ,फागुन आ रहा है धीरे धीरे

है, अंबर सजा हुआ सतरंगी बहारों से

वहीं ,धरती ने ओढ़ ली है सतरंगी चादर

खिले हुये पुष्पों की ---और

कूक -कूक कर, कोयल भी करती है

स्वागत ---उसका

लगता है,अब फागुन आ गया है ...


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