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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

खुशियाँ जिंदगी की

खुशियाँ जिंदगी की

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सारी खुशियाँ जिंदगी के मुकम्मल सफ़र से चली वो

जब मेरी बेटी रुखसत हो के मेरे घर से चली..,

बिखेरी थी जो खुशियाँ मेरे घर में वो

समेट कर संग अपने उन्हें भी ले गई,


छोड़ गई पीछे अपने अनमोल पलों को

जब वो रुखसत हो के मेरे घर से चली।

गूंजती है वही खनकती हँसी घर में मेरे

मानों वो यहीं है हरपल संग मेरे यादों में,


सारी खुशियाँ जिंदगी के मुकम्मल सफ़र से चली वो,

बिखेरने को खुशियाँ एक नये सफ़र पर,

बन के रही मेरा अभिमान वो अब तक,

अब चली वो संग पिया के घर 

बन के उसका स्वाभिमान वो,


जब वो रुखसत हो के मेरे घर से चली,

सारी खुशियाँ जिंदगी के मुकम्मल सफ़र से चली वो,

जब मेरी बेटी रुखसत हो के मेरे घर से चली।


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