शशि कांत श्रीवास्तव

Children

4.5  

शशि कांत श्रीवास्तव

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मेरी गुड़िया

मेरी गुड़िया

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यह देखो ये मेरी गुड़िया,

सुन्दर सुगढ़ सलोनी गुड़िया।

कमलनयन से नैन हैं उसके,

रेशम जैसे बाल हैं उसके 

घुँघराले से लगते हैं वो,

गाल गुलाबी होंठ रसीले

लगते हैं मेरी गुड़िया के,

यह देखो ये मेरी गुड़िया,

सुन्दर सुगढ़ सलोनी गुड़िया।


रोज सवेरे नहला कर के

उसको खूब सजाती थी,

काला टीका उसे लगाती 

जो करती है रक्षा उसकी,

लोगों की हर बुरी नजर से,

खुश होकर जब हँसती है वो

मानो मंदिर में घंटी बजती हो,

दौड़ दौड़ कर खेला करती

धमा चौकड़ी खूब मचाती,

पैरों की पाजेब जब बजती

गुंजित होता घर का आँगन,

जब थक कर वो सो जाती है

तब घर सूना सा हो जाता,

यह देखो ये मेरी गुड़िया,

सुन्दर सुगढ़ सलोनी गुड़िया।


गुड़िया को मैं खूब पढ़ाऊं

अफसर उसे बड़ा बनाऊं,

और बने अभिमान हमारा,

गुड़िया जब जायेगी पढ़ने ,

उसे, काला टीका रोज लगाऊं

बुरी नजर से उसे बचाऊं,

सुन्दर सुगढ़ सलोनी गुड़िया।

इक दिन दुल्हन उसे बनाऊं

घर आँगन फूलों से सजाऊं,

श्रृंगार करूँ मैं खुद उसकी

सुन्दर गहनों और सुमनों से,

फिर लगाऊं इक काला टीका,

जो करती है रक्षा उसकी 

अला बला और बुरी नजर से,

यह देखो ये मेरी गुड़िया,

सुन्दर सुगढ़ सलोनी गुड़िया।



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